लोगों की राय

श्रंगार-विलास >> कादम्बरस्वीकरणकारिका

कादम्बरस्वीकरणकारिका

डॉ. दलवीर सिंह चौहान

प्रकाशक : चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :107
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15350
आईएसबीएन :8170802326

Like this Hindi book 0

काम शास्त्र का अद्भुत ग्रंथ

प्रस्तावना

नास्ति नासीत्राभविष्यद्, भूतं कामात्कात्परम्।
एतत्सारं महाराज!, धर्मार्थाविति संस्थितौ।।

भारतीय संस्कृति के अमूल्य ग्रन्थरत्न महाभारत शान्तिपर्व के आपद्धर्म पर्व की यह उक्ति बहुत सोच-समझ कर कही गयी है। इसमें मानवजीवन का ही नहीं, समस्त चराचर जगत् का सार निहित है, वहाँ यह कहा गया है कि काम ही स्रष्टा है और सृष्टि का संचालक है। सभी व्यक्ति कामना करते हैं, काम से परे न कोई है, न कभी था और न भविष्य में कभी होगा। धर्म और अर्थ दोनों काम के बल पर ही स्थित हैं; क्योंकि काम का अर्थ है-इच्छा तथा जब इच्छा ही नहीं होगी, तो मनुष्य क्यों किसी कार्य में प्रवृत्त होगा? काम के विना न मनुष्य की धर्म में प्रवृत्ति होगी और न अर्थ में। जब आनन्द भोग की इच्छा होती है, तब मनुष्य अर्थ की ओर प्रवृत्त होता है और फिर अर्थोपार्जन के लिये धर्म (कर्तव्य) करता है। इस कथन द्वारा ही भीम ने पाण्डवों के बीच धर्म, अर्थ और काम में कौंन श्रेष्ठ है? इस विवाद को सुलझाया और तीनों में काम को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया है।

अत: इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह काम ही समस्त संसार का सार है। काम का अर्थ है इच्छा। दुनियाँ बनाने वाले ने दुनियाँ को इच्छा से बनया होगा तथा इच्छा से ही वह इसका पालन कर रहा है तथा जब चाहेगा तब दुनियाँ को समाप्त भी कर देगा। यह इच्छा कब होती है? जबकि उसके प्रति आकर्षण होता है, यह आकर्षण ही तो सार का सार है। यह आकर्षण क्यों होता है? कौन इसको पैदा करने वाला है? जब इस प्रश्न पर विचार करते हैं, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अवश्य कोई शक्ति है, जो इस आकर्षण को पैदा करती है। फिर कोई उसे ईश्वर कहे, अल्लाह कहे, दी गॉड कहे या फिर प्रकृति कहे; परन्तु जो भी हो, जो हमारे सामने है, वह है-आकर्षण (परस्पर खिंचाव), जिसे काम कहना अन्यथा न होगा। यह आकर्षण समस्त प्रपञ्च का मूल है। समस्त ग्रह, नक्षत्र इस आकर्षण के कारण ही स्थित हैं। संसार के सभी पदार्थों के अस्तित्व का कारण वह आकर्षण ही है। संसार के सभी प्राणी आकर्षण के बल पर नवीन सर्जना करते हैं और आकर्षण के कारण ही संसार चलाते हैं।

अतः यह काम शास्वत है, सत्य है और यही परम सत्ता है। इस काम के कारण ही एक वस्तु दूसरी पर आकृष्ट होती है, जब आकर्षण होता है, तो संयोग होता है। संयोग होता है, तो सर्जना होती है। इसीलिये काम को सृष्टिकर्ता माना गया है; क्योंकि शिवपुराण में कहा गया है कि "शिवशक्तिसमायोगात् जायते सृष्टि कल्पना'' अर्थात् शिव और शक्ति के संयोग से सृष्टि होती है। इसे कुछ पुरुष और प्रकृति, कुछ आदम और हौवा मानते हैं। जो भी हो! नर और मादा के संयोग से सृष्टि हुई है, हो रही है और होती रहेगी। नर, वानर, पशु-पक्षी की बात क्या? ये वनस्पतियां भी (सम्भोग) से नवीन सृजन करती हैं। यदि काम नहीं होता तो किसी का नाम नहीं होता।

यही जीवन देता है, जीना सिखाता है और जीने को बाध्य करता हैं।

प्रथम पृष्ठ

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book