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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"अरी तूने तो अभी से उसे 'वो' बना दिया।” सुनीता ने बनावटी गुस्से से कहा। फिर ड्रेसिंग टेबल के सामने मेकअप करने के लिये बैठ गई। सुनीता बहुत हल्का सा श्रृंगार कर रही थी। क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि मेकअप में उसका असली चेहरा 'छिप जाये।

“सुनीता अंकल ने कहा है...जरा बढ़िया सा श्रृंगार होना। चाहिये।" मीना ने आंख दबाते हुये कहा।

सुनीता ने हल्का सा मेकअप किया फिर अलमारी खोलकर साड़ी निकालने लगी। सुनीता ने प्याज कलर की साड़ी व उसी से मैच करतां ब्लाऊज निकाल लिया। ये साड़ी उसे मुकेश ने राखी पर भेंट दी थी। सुनीताभ्खुद-ब-खुद बड़बड़ा उठी-“भैया अगर ये वही विकास है तो मैं तुम्हारी लता को एक दिन अवश्य ढूंढ . निकालूंगी...ऐसा मेरा विश्वास है।"

फिर सुनीता ने साड़ी पहननी शुरू कर दी, तैयार होकर सुनीता शीशे के सामने जा खड़ी हुई। इस साड़ी से उसकी रूप अधिक ही निखरे गया था। वास्तव में सुनीता बहुत सुन्दर लग रही थी।

"हाय सुनीता, मार डाला।” दौड़ती हुई मीना आई और सुनीता से चिपट गई।

“क्या हुआ?"

"हुआ क्या सब बेकार।"

"क्या मतलब?” सुनीता घबरा गई। उसने सोचा मीना को विकास अच्छा नहीं लगा।

“अरे भगवान बहुत खराब है...मुझे लड़की बना डाला...अगर मैं लड़का होती तो बस इस समय तुझे भगा ले जाती ।" मीना ने. बुरा सा मुंह बनाकर कहा।

"ओह तो ये बात है।” मुस्कुराते हुये सुनीता ने कहा।

"वैसे यार हमारे होने वाले जीजा जी भी कम नहीं हैं।” मीना ने सुनीता की ठोड़ी पकड़कर कहा।

तभी सेठ जी कमरे में आये-“सुनीता बेटी तैयार है।" सुनीता को देखते हुये कहा।

“हो पापा।” सुनीता ने धीरे से कहा।

“मीना बेटी तुम सुनीता को ले आना।”

"नहीं अंकल...इस समय मैं सुनीता के साथ नहीं जाऊंगी।” मीना ने कहा।

"क्यों?"

"सुनीता अकेली ही जायेगी।"

"जैसी तुम्हारी मर्जी...अरे मुकेश अभी नहीं आया।” सेठ जी ने कहा।

"मैं आ गया अंचल।” पीछे से मुकेश की आवाज सुनाई दी पर उसके स्वर में कोई उत्साह नहीं था।

सुनीता व मीना दोनों ने एक साथ मुकेश की ओर देखा पर मुकेश की नजरें झुकी हुई थीं।

"बेटा तुमने चाय नाश्ते का इंतजाम सब ठीक कर दिया।”

सेठ जी ने मुकेश से कहा।

“हाँ अंकल सब ठीक है।”

सेठ जी सुनीता को बाहर आने को कहकर चल दिये। सेठ जी के जाने के बाद मुकेश एक कुर्सी पर पसर गया।

"क्या बात है मुकेश भैया?"सुनीता ने मुकेश को परेशान देखकर पूछा हालांकि मुकेश का चेहरा देखते ही सुनीता सब समझ गई थी।

मुकेश ने कंधे पर सुनीता का हाथ देखा तो नजरें ऊपर उठाई और फिर सुनीता के रूप को देखता ही रह गया। इस समय सुनीता अप्सरा सी नजर आ रही थी।

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