सामाजिक >> अजनबी अजनबीराजहंस
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राजहंस का नवीन उपन्यास
“तुम पागल हो मैं कोई कर्ज नहीं दे रही हैं...ये पैसा मैं विकास से वसूल कर लूंगी। तुम चिन्ता मत करो।"
"नहीं रूबी मैं विकास से भीख नहीं लूंगी।"
"भीख कौन मांगेगा..देखना कुछ दिनों में विकास तुमसे माफी न मांगे तो मेरा नाम बदल देना।”
“पर...परन्तु...।"
“पर वर कुछ नहीं...अभी तक तुम अपनी या विकास की बुद्धि पर चली हो...अब हमारी बुद्धि पर चलोगी।”
रूबी ने लता को समझाया और उसके फ्लैट से बाहर निकल गई।
रूबी के जाने पर लता को लगा जैसे उसके दिल पर पड़ा बोझ हल्का हो गया है। लता सोचने लगी मैं आज तक स्दा ही रूबी से नफरत करती आई हूं मगर क्या जानती थी जिसे पत्थर समझती रही वही हीरा निकला। अब उसे रूबी की एक-एक बात सही लग रही थी।
आज विकास अपनी कोठी पर ही था। उसका मन कुछ अशांत था इसीलिये वह आज आफिस नहीं गया था। लता के यहाँ जाना उसने छोड़ दिया था। आजकल लता आफिस भी नहीं आ रही थी। विकास जानता था कि लता आफिस क्यों नहीं आ रही है। परन्तु इस तरह की बातों की उसने आज तक कभी परवाह'. नहीं की थी परन्तु आज पता नहीं क्यों बार-बार विकास का ध्यान लता की ओर जा रहा था। वह चाहता था अगर लता आफिस न आये तो वह किसी और को नौकरी पर रख ले लेकिन उसे कोई ऐसी लड़की नजर नहीं आ रही थी जिसे वह रखे फिर बिना इस्तीफे के या कोई कमी के वह सता को नौकरी से निकाल भी नहीं सकता था।
इधर सुनीता अक्सर ही लता को लेकर उल्टे सीधे प्रश्न पूछती रहती थी और दोनों में झगड़ा होने लगी थी। शादी से पहले विकास ने ये कभी नहीं सोचा था कि उसकी पत्नी उस पर हावी हो जायेगी उसने तो यही सोचकर शादी की थी कि डैडी शादी के बाद उसकी निगरानी करनी छोड़ देंगे फिर घर में भी उसकी ऐश का साधन बन जायेगा। इह पत्नी को सिर्फ पैर की जूती ही समझता था। वह नहीं जानता था कि पली उसके हर काम में दखल देगी।
इन सब परेशानियों के साथ सबसे बड़ी परेशानी उसके लिये जग्गा था। वह हर महीने किसी भी दिन आकर उसके सिर पर सवार हो जाता था और अपनी इच्छानुसार रुपया ऐंठ कर ले जाता। जग्गा आज क पांच हजार से कम रुपया नहीं ले गया। इससे ज्यादा ही लेता था और दिनों-दिन उसकी मांग बढ़ती जा रही थी। विकास परेशान था वह क्या करे तभी नौकर ने आकर बताया"सरकार कोई लड़की आई है।"
"क्या लड़की।” विकास को जैसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो। उसकी आंखों में लता को चेहरा घूम गया।
"जी सरकार वह आपसे मिलना चाहती है।”
भेज दो।"
"अच्छा सरकार।" नौकर ने कही और चला गया।
विकास आने वाली लड़की के विषय में सोचने लगा कि कौन हो सकती है तभी कमरे के बाहर आहट हुई और विकास की नजरें दरवाजे की ओर उठ गई तो सामने से रूबी आ रही थी।
"हैल्लो रूबी।” विकास ने कहा और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ गई।
“अरे भई क्या बात है, आजकल पहरे में रहने लगे हो?"
“मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा।"
"अरे वो तुम्हारा नौकर अन्दर ही नहीं आने दे रहा था जैसे मैं तुम्हें उठाकर भाग जाऊंगी।"
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