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राजहंस

प्रकाशक : धीरज पाकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :221
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15358
आईएसबीएन :0

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राजहंस का नवीन उपन्यास

"पा...नी.." विकास के मुंह से निकला। डाक्टर ने कुछ बूंदे । दवाई की विकास के मुंह में डाल दी। जिसके अन्दर जाते ही विकास की आंखें खुल गई तो सुनीता उठकर विकास के सिरहाने पहुंच गई और विकास के बालों में हाथ फेरने लगी।

"बेटा..विकास।” सेठजी ने कहा और विकास के पास ही बैठ गये।

"ईडी, मुझे क्या हो गया था?”

“तुम्हें कुछ नहीं हुआ है...बस कुछ बेहोश हो गये थे।"

विकास विस्तर में लेटा सुनीता के चेहरे को पढ़ रहा था पर

उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया। सुनीता का चेहरा सपाट था उसके चेहरे पर कोई ऐसा चिन्ह नहीं था जिससे यह अन्दाजा लगाया जा सके कि सुनीता विकास के बुरे कार्य को जानती है बल्कि उसके चेहरे पर विकास के लिये असीम प्यार था जो एक पत्नी के दिल में अपने पति के लिये होता हैं।

"कुछ खाना है?” सुनीता ने विकास को अपनी तरफ देखते देखकर कहा।

“नहीं।"

“पर ऐसी कमजोरी कैसे जायेगी?"

“अब मैं बिल्कुल ठीक हूं।”

"मालकिन जूस।” रामू ने बाहर से ही आवाज लगाई।

"ले आओ काका।” सुनीता ने कहा।

रामू ने जूस का गिलास लाकर पास रखी छोटी मेज पर रख दिया।

"हाँ अब इसे पी जाओ..फिर तुम्हें दवाई भी पिलानी है।" सुनीता ने विकास से कहा।

जूस पीने के बाद सुनीता ने विकास को दवाई पिलाई और लेटा दिया।

"मैं अभी आई।” सुनीता कहकर बाथरूम में घुस गई। वह जानती थी अब कम से कम छ: घंटे विकास चैन की नींद सोयेगी।

सुनीता तैयार हुई। डैडी से बताया और अस्पताल के लिये चल पड़ी।

सुनीता जब अस्पताल पहुंची तो लता को होश आ चुका

था। उसकी बगल में ही उसका बेटा लेटा था। सुनीता ने देखा लता बड़े प्यार से अपने बेटे को देख रही थी उसकी आंखों में पानी भरा था।

“मैं अन्दर आ सकती हूं।” सुनीता ने दरवाजे में घुसते हुये कहा।

."ओह आओ।"

सुनीता लता के पास बिछी कुर्सी पर बैठ गई और बच्चे को निहारने लगी।

बच्चा विकास की शक्ल पर था। सुनीता को लगा जैसे इस बच्चे की मां लता नहीं खुद वह है। सुनीता ने बच्चे को उठाया और आती से लगा लिया। उसे बच्चे को लेकर बड़ा सकन मिल रहा था।

"अगर तुम इसी प्रकार मेरे बच्चे को अपना लो तो मैं चैन से मर सकूँगी।"

लता ने डबडबाई आंखों से कहा।

"हट पगली.. तुझे मरने ही कौन देगा?"

"जीने भी तो कोई नहीं देगा।”

"क्यों नहीं जीने देगा।"

"एक कुंवारी मां कब तक जी सकेगी...ये जालिम दुनिया वाले ने मुझे जीने देंगे और न तुम मुझे मरने दोगी...फिर मेरा क्या होगा?"

"तुम्हारा कुछ नहीं होगा..जिस दिन तुम्हें यहाँ से छुट्टी मिलेगी...मैं तुम्हारे बेटे को एक प्यारा सा तोहफा देंगी...फिर तुम खुद ही जीने की इच्छा करोगी।"

"मैं तो बस यही चाहती है...तुम मेरे बेटे को अपना लो इसे बाप का नाम दे दो...बोलो दोगी ना।”

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