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श्रंगार-विलास >> बाभ्रव्यकारिका

बाभ्रव्यकारिका

डॉ. दलवीर सिंह चौहान

प्रकाशक : चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :108
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15362
आईएसबीएन :9788170801893

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कामकुञ्जलतान्तर्गत एक अद्भुत कामशास्त्रीय काव्य

विनिवेदन

मानव जीवन को सुव्यवस्थित बनाने के लिये आप्त पुरुषों ने पुरुषार्थ चतुष्टय की व्यवस्था की है। सभी धर्मों में इसके अलग-अलग रूप की व्यवस्था है; परन्तु सभी ने मनुष्य को सुमार्ग पर चलने का उपदेश दिया है। इसी क्रम में यह पुरुषार्थ चतुष्टय समाज को सुव्यवस्थित करने का आधार स्तम्भ है। मनुष्य धर्म अर्थात् शुभकर्मों से अर्थ का अर्जन करे तथा धर्मानुसार ही उसका भोग करे, अपनी इच्छाओं की पूर्ति करे, तब मनुष्य मोक्ष अर्थात् परमानन्द को अवश्य प्राप्त करेगा। अब वह आध्यात्मिक मोक्ष तो पता नहीं कैसा है? परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि मनुष्य उपर्युक्त तीनों साधनों का आचरण कर अवश्य ही सांसारिक बन्धनों अर्थात् वादविवादों से मुक्त हो जायेगा। वह मर कर उस परमात्मा में मिलेगा कि नहीं, ये तो ज्ञात नहीं; परन्तु अपने सद्गुणों के आधार पर समस्त व्यक्तियों की प्रशंसा का पात्र बनकर सबकी आत्माओं में अवश्य समा जायेगा।

अतः यह मोक्ष मानव जीवन का लक्ष्य है, यह साध्य है तथा इसके साधन हैं—धर्म, अर्थ और काम। इन तीनों की सामाजिक उपादेयता सृष्टि के आदि से वाञ्छित रही है। इसीलिये तो सर्वप्रथम सृष्टि के आदि में ही प्रजापति ब्रह्मा ने धर्मार्थ काम का प्रवचन किया था। उसमें से मनु ने धर्मशास्त्र, बृहस्पति ने अर्थशास्त्र तथा भगवान् शंकर के अनुचर नन्दी ने कामविषयक कामशास्त्र की रचना की। अत: कामशास्त्र प्रवचन की परम्परा आदिकाल से ही है, क्यों न होती? यह काम ही तो सृष्टि का मूल है। जब सृष्टि ही काम से है, तब उस काम को जानना आवश्यक है; जिसकी प्रवचन स्वम्भू ब्रह्मा ने आवश्यकतानुार पहले ही कर दिया है। ब्रह्मा के प्रवचन से कामसार ग्रहण कर आचार्य नन्दिकेश्वर ने एक हजार अध्यायों में इसका प्रणयन किया, फिर औद्दालक पुत्र श्वेत केतु मुनि ने ५०० अध्यायों में इसका संक्षेपण किया फिर धीरे-धीरे सब अध्याय छितरा गये, तब पाञ्चाल निवासी बभुपुत्र बाभ्रव्य मुनि ने १५० अध्यायों में इसकी रचना की, जिसमें कि सात अधिकरण थे। इन सातों अधिकरणों की आवश्यकतानुसार सात मुनियों ने विवेचना की, जो सभी समाज की मानसिक सङ्कीणता की आंधी में इधर-उधर विखर गये। और अन्त में आचार्य वात्स्यायन ने सबको सङ्कलित कर सात अध्यायों वाले कामसूत्र की रचना की, जो आज सबसे अधिक ख्याति प्राप्त कामशास्त्र है।

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