संस्मरण >> भीतर घाम बाहर छाँव भीतर घाम बाहर छाँवश्यामसुन्दर निगम, चक्रधर शुक्ल, डॉ संदीप त्रिपाठी
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डॉ सुरेश अवस्थी और उनकी रचना धर्मिता
अनुक्रम
जिन्दगी के स्याह-सफेद पन्नों के बीच की लिखावट, 13
मनुष्य होने के अनुभव की कविता, 20
व्यंग्य का शिवशृंगार, 25
प्रेम की समानान्तर प्राण-प्रतिष्ठा, 30
बूढों को बच्चा बनाती डॉ. अवस्थी की बाल कविता-कथा, 33
शहर की सहर : व्यवस्था पर नजर (वाया ‘शहरनामा'), 35
‘लम्बतरानी' नहीं बहुमुखी, माने सचमुच डॉ. सुरेश अवस्थी, 42
कैंची और आलपिन ‘सुरेश’ से डॉ. सुरेश अवस्थी तक, 46
कान्वेन्ट कल्चर के चलते.... 60
हमारी पसन्द, 71-124 शब्द जब-जब बोलते हैं... / मजदूर / माँ : सुबह से शाम तक / जंगल से गुजरते हुए / बच्चे : चार कविताएँ / चप्पा-चप्पा चरखा चले / तुम्हारे रूप का दर्पण / गज़ल / कुछ फुटकर दोहे, शिष्य के हाथों मर जाते / बुरी नज़र वाले तेरे बच्चे जिएं / स्वर्ग की सीढ़ियां बिकाऊ हैं... / ...लेकिन आज कोई नहीं मरा / बदला / अर्थहीन होते श्लोक / धूलगांव / अदबी संस्कृति....
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