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सिद्ध स्तोत्र माला

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती

प्रकाशक : योग पब्लिकेशन्स ट्रस्ट प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :244
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15419
आईएसबीएन :81-86336-36-2

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संस्कृत के प्रिय स्तोत्रों का संकलन

15419_SiddhaStotraMala-SwamiSatyananda


अनुक्रमणिका

गुरु स्तोत्र

गुरु-पादुका-स्तोत्रम्

गुर्वष्टकम्

गुरु-स्तुतिः

गुरु-स्तोत्रम्

गुरु-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

गुरु-नामावलि:

दक्षिणामूर्ति-स्तोत्रम्

शिवानन्द मंगलम्

गणेश स्तोत्र

गणपनि-स्तवः

विघ्नेश्वर-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

संकटनाशन-गणेश-स्तोत्रम्

देवी स्तोत्र

अन्नपूर्णा-स्तोत्रम्

उमामहेश्वर-स्तोत्रम्

कनकधारा-स्तोत्रम्

गंगा-स्तोत्रम्

तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम्

दुर्गा-अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम्

दुर्गाद्वात्रिंशनाममाला

दुर्गा-सूक्तम्

दुर्गा-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

दुर्गा-देवी-ध्यानम्

देवी-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

देवी-अपराध-क्षमापन-स्तोत्रम्

देवी-सूक्तम्

भवान्यष्टकम्

भू-सूक्तम्

महिषासुरमर्दिनी-स्तोत्रम्

मीनाक्षी-पञ्चरत्नम्

लक्ष्मी-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

ललिता-पञ्चरत्नम्

ललिता-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

ललिता-सहस्र-नामावलिः

ललिता-सहस्रनाम स्तोत्रम्

सरस्वती-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

सरस्वती-स्तोत्रम् सरस्वती-सूक्तम्

श्री-सूक्तम्

श्री-कमला-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-काली-ककारादि-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-छिन्नमस्ता-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-तारा-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-बाला-त्रिपुर-सुन्दरी-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-ललिता-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-धूमावती-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-बगला-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-भुवनेश्वरी-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-भैरवी-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-मातंगी-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

श्री-षोडशी-अष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम्

यमुनाष्टकम्

शिव स्तोत्र

चमकप्रश्न:

द्वादश ज्योतिर्लिंगानि

रुद्राष्टकम्

रुद्रप्रश्न:

लिंगाष्टकम्

वेदसार-शिव-स्तोत्रम्

शिव-अपराध-क्षमापन-स्तोत्रम्

शिवनामावल्यष्टकम्

शिवपंचाक्षर-स्तोत्रम्

शिव-ताण्डव-स्तोत्रम्

शिव-मानस-पूजा

शिवमहिम्न: स्तोत्रम्

शिवषडक्षर-स्तोत्रम्

शिव-सहस्रनाम-स्तोत्रम्

शिव-सहस्र-नामावलिः

शिव-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

शिवाष्टकम्

विष्णु स्तोत्र

दशावतार-स्तोत्रम्

नारायण-सूक्तम्

पुरुष-सूक्तम्

विष्णु-सहस्रनाम-स्तोत्रम्

विष्णु-सहस्र-नामावलिः

राम स्तोत्र 

नाम-रामायणम्

नमामि भक्त वत्सलं

रामरक्षा-स्तोत्रम्

राम-स्तुति

श्री रामचरित मानस मंत्र पाठ

हनुमान चालीसा

कृष्ण स्तोत्र

अच्युताष्टकम्

कृष्णाष्टकम्

कृष्ण-शत-नाम-स्तोत्रम्

कृष्ण-अष्टोत्तर-शत-नामावलि:

गीता-अष्टोत्तर-शत-नामावलि:

गोपाल-वन्दन

गोविन्दाष्टकम्

गोविन्द-दामोदर-स्तोत्रम्

देहि पदम्

मधुराष्टकम्

मोहमुद्गर

श्री कृष्णाष्टकम्

नवग्रह स्तोत्र

श्री-सूर्य-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

श्री-सोम (चन्द्र)-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

श्री-मंगल-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

श्री-बुध-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

श्री-बृहस्पति-अष्टोत्तर-शत-नामावलि:

श्री-शुक्र-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

श्री-शनि-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

श्री-राहु-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

श्री-केतु-अष्टोत्तर-शत-नामावलिः

नवग्रह-सूक्तम्

विविध स्तोत्र

अग्नि-सूक्तम्

आदित्य-हृदयम्

उपदेश-पंचकम्

इशु-नामावलिः

ईशावास्योपनिषद्

कौपीन-पंचकं-स्तोत्रम्

तैत्तिरीयोपनिषद्

निर्वाणाष्टकम्

ब्रह्म-ज्ञानावली-माला

भाग्य-सूक्तम्

नासदीय-सूक्तम्

रोग-निवारण-सूक्तम्

वैदिक शान्ति मन्त्र

शान्ति-मन्त्रम्

स्वस्ति-वन्दना

हस्तामलक-स्तोत्रम्

शान्ति पाठ

परिचय

हम आत्मा तक कैसे पहुँचें, जो इन्द्रियों, मन या हमें उपलब्ध किसी भी साधन की पहुँच से परे है? क्या हमें इसके स्वरूप का कोई अनुभव है? उपनिषदों में घोषणा की गई है, नैव वाचा न मनसा प्राप्तुम्, अर्थात् वाणी या मन द्वारा आत्मा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। सौभाग्य से अपने आपको पूर्णता और आत्म-साक्षात्कार की स्थिति में स्थापित करने वाले ऋषियों और सन्तों ने हमें कुछ संकेत दिये हैं। उनके अनुसार आनन्दावस्था का वह अनुभव एक स्तोत्र के रूप में निःसृत होता है। स्तोत्र शब्द का शाब्दिक अर्थ है-सर्वोच्च सत्ता की महिमा का वर्णन करने वाले मन्त्रों का समूह, जैसे पुरुष-सूक्तम् सर्वोच्च सत्ता की एक शक्ति विशेष का वर्णन करने वाला वैदिक स्तोत्र है, या विष्णु-सहस्त्रनाम, जिसमें सर्वोच्च सत्ता की सर्वव्यापकता का वर्णन है। इस प्रकार स्तोत्रों का नियमित पाठ कर व्यक्ति उस दैवी सत्ता का स्मरण कर सकता है और उस

अनुभव का साक्षी भी बन सकता है।

स्तोत्र चेतना की उस उच्च अवस्था का एक स्वरूप है, जहाँ भावना के केन्द्र, हृदय से सम्बन्ध जुड़ता है। सनातन परम्परा में, भावना जागृत करने के एक साधन के रूप में स्तोत्रों को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। हृदय के साथ एक गहरा सम्बन्ध बनाकर हम उस शक्ति का अनुभव कर सकते हैं, जो इस ब्रह्माण्ड की सष्टि करने वाली है, जो जीवन को एक सूत्र में पिरोने वाली शक्ति के रूप में जन्म देती, पालन करती और रूपान्तरण करती है। इस संदर्भ में, स्वामी शिवानन्द जी कहते हैं-'देवी स्तोत्र मन्त्रों के शक्तिशाली स्रोत हैं। प्रत्येक श्लोक एक संचालक शक्ति है, जो बलपूर्वक व्यक्ति के चरित्र को उन्नत बनाती है।'

सभी स्तोत्र ऋषियों और मुनियों की वाणी से नि:सृत हुए हैं। स्तोत्रों के मुख्य स्रोत वेद, पुराण, तंत्र और अन्य स्मृतियाँ हैं, जिन्हें स्मृति के माध्यम से संचारित किया गया है। उपासना की प्रथा में भी स्तोत्रों को एक साधन के रूप में उपयोग किया जाता है। आदिगुरु शंकराचार्य ने कई स्तोत्रों की रचना की। इनमें से कई स्तोत्रों के पीछे इनसे सम्बन्धित रोचक घटनाएँ हैं। उदाहरणार्थ, हस्तामलक ने, जो शंकराचार्य के चार प्रमुख शिष्यों में से एक थे, न कभी सामान्य कार्यों की चर्चा की और न ही उनके प्रति कोई रुचि दिखाई। उनके पिता उन्हें शंकराचार्य के पास लाए, जिन्होंने उनसे पूछा, तुम कौन हो? उत्तर के रूप में उनकी उस अवस्था को दर्शाती एक अलौकिक कविता उनके मुख से निकली

'मैं मानव नहीं, ईश्वर नहीं, गृहस्थ नहीं, वानप्रस्थी नहीं, ब्राह्मण या क्षत्रिय नहीं, मैं केवल शुद्ध चेतना हूँ ... मैं वही शाश्वत, अभिन्न चेतना हूँ।' यह अभिव्यक्ति बाद में वैदिक परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण स्तोत्र बन गयी।

स्तोत्र आध्यात्मिक शिक्षाओं को मन्त्रों के स्पन्दन द्वारा संचारित करने के साधन हैं। उदाहरणार्थ, शंकराचार्य द्वारा प्रणीत भज-गोविन्दम् एक ऐसा स्तोत्र है, जिससे वैराग्य जागृत होता है। स्तोत्र इस शाश्वत सत्य के साक्षी हैं कि नाम स्वयं भगवान से भी महान होता है-ब्रह्म राम ते नाम बड़।सृष्टिकर्ता की विभिन्न शक्तियों के कितने नाम हैं, जैसे, शिव, विष्णु, ललिता, राम, कृष्ण आदि। नाम-रामायण भगवान राम के नाम की महिमा का एक उदाहरण है। इसी प्रकार विभिन्न स्तोत्रों, जैसे, शिव-महिम्न, विष्णु सहस्रनाम या ललिता-सहस्रनाम की भी वही महिमा है।

मन्त्र-शास्त्र यह कहता है कि ध्वनि में रहस्यमय ऊर्जा निहित होती है। अभ्यास के द्वारा उस ऊर्जा को जागृत करना सम्भव है। जब अन्य चिकित्सा पद्धतियाँ विफल हो जाती थीं, तब स्वामी शिवानन्द जी नाम-चिकित्सा की सलाह देते थे। वे कहते थे, भगवद्-नाम में अगाध शक्ति होती है। सभी दिव्य शक्तियाँ भगवाद्-नाम में ही छिपी हुई हैं। इसका कारण है कि मन्त्रों के द्वारा व्यक्ति बाह्य रूप से उच्चारित शब्दों या बैखरी से लेकर अभिन्न क्षमतायुक्त परा के सूक्ष्म स्तर तक, जो कि सभी भाषाओं और ऊर्जाओं का अनित्य मूल आधार है, ध्वनि तरंगों के विभिन्न स्तरों का अनुभव प्राप्त करता है। परा शब्द ब्रह्म या शक्ति या शुद्ध ऊर्जा है।

स्तोत्रों का यह संकलन ईश्वर के कई रूपों के प्रति एक विशेष समर्पण है और इसे हर युग के सिद्धों और सन्तों का आशीर्वाद प्राप्त है। ये स्तोत्र साधक के मन और चेतना को उन्नत तथा हृदय को नम्र और उदार बनाते हए उसे सहजता से आगे बढ़ाते हैं, ताकि अपने आध्यात्मिक जीवन में ईश्वर की साक्षात् अनुभूति की जा सके।

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