नई पुस्तकें >> सूक्ति प्रकाश सूक्ति प्रकाशडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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1000 सूक्तियों का अनुपम संग्रह
जब तक 'मैं' और 'मेरा' का बुखार चढ़ा हुआ है, तब तक शान्ति नहीं .. मिल सकती।
जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, असूया धर्मचर्या को, क्रोध श्री को, अनार्यसेवा शील को, काम लज्जा को और अभिमान सब को हरता है।
अहंकार रूपी बादल के हट जाने पर चैतन्यरूपी सूर्य के दर्शन होते हैं।
पूर्ण शान्ति का मुझे कोई रास्ता नहीं दिखाई देता, सिवा इसके कि आदमी अपने अन्तर की आवाज़ पर चले।
मनुष्य अपने अन्तर का अनुसरण करता है, इसका पता उसकी नजरें दे देती हैं।
जो किसी को दुःख नहीं देता और सबका भला चाहता है, वही अत्यन्त सुखी रहता है।
यौवन, धन-सम्पत्ति, प्रभुत्व और अविवेक-इनमें से प्रत्येक अनर्थ करने के लिए काफी है। जहाँ चारों हों वहाँ क्या होगा?
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