विविध >> अलौकिक शक्तियाँ अलौकिक शक्तियाँप्रमोद सागर
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10 पाठकों को प्रिय 447 पाठक हैं |
अलौकिक शक्तियाँ कोई जादू टोना नहीं है। इन अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने के लिए आपको किसी के पास जाने की आवश्यकता नहीं है।...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अलौकिक शक्तियाँ कोई जादू टोना नहीं है। इन अलौकिक शक्तियों को प्राप्त
करने के लिए आपको किसी के पास जाने की आवश्यकता नहीं है। ये सारी शक्तियाँ
तो हमारे और आपके अन्दर ही विद्यमान हैं। संसार के प्रत्येक मनुष्य के
अन्तर्मन में अलौकिक और अद्भुत शक्तियों के बल पर वह असम्भव को भी सम्भव
बना सकता है। ये अलौकिक शक्तियाँ वे शक्तियाँ हैं जो कि आपको साधारण मानव
से ऊपर उठाकर अद्भुत असाधारण व पराशक्ति सम्पन्न महामानव बना सकती हैं। इन
शक्तियों के बल पर आप हवा में उड़ सकते हैं, भूमि में दबे हुए धन का पता
लगा सकते हैं, किसी को भी वश में कर सकते हैं, दूर देश में घटित हो रही
घटनाओं को देख सकते हैं। हम कहते हैं कि अगर आप पूर्ण मनोयोग और
एकाग्रचित्त से इस पुस्तक का अध्ययन करके इसमें दिये गये अभ्यास करेंगे तो
आपको अलौकिक शक्तियों का स्वामी बनने से कोई नहीं रोक सकता है।
आभार
सर्वप्रथम मैं हृदय से विशेष आभार प्रकट करना चाहता हूँ उस अदृश्य, अज्ञात
और अलौकिक शक्ति को; जिसने मुझे यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा दी और जिसने
स्वयं मेरा हाथ पकड़कर इस पुस्तक को लिखवाया।
मैं अभी तक भी नहीं जानता हूँ कि वो अज्ञात शक्ति कौन है और क्या चाहती है ? मुझे तो बस इतना ही याद है कि जब मैं एक अर्द्ध रात्रि को ‘ऑटोमैटिक राईटिंग’ (स्वाचालित लेख) के माध्यम से परलोक की किसी आत्मा से सम्पर्क करने में प्रयासरत था कि सहसा मेरे हाथों में विद्युत का-सा एक झटका लगा और मेरी कलम में हलचल होने लगी, जिसके फलस्वरूप कागज पर कलम स्वत: लिखने लगी कि- ‘‘तुम..........या..............नि..............कि..........तुम ही...........अब...........एक पु.......स्तक........लिखोगे........’’। तब मैंने ‘टैलीपैथी’ के माध्यम से जानना चाहा कि किसी प्रकार की पुस्तक लिखूँ और कैसे लिखूँ ? तो कलम ने फिर से लिखा- ‘‘पुस्तक का.....ना............म...........अलौकिक............श...........क्तियाँ........रखो............फिर.............अपने आप.........ही...........लिखते चले जा.....ओगे।’’ बस इसी प्रेरणा को संकलित करने पर जो परिणाम सामने आया वह इस पुस्तक के रूप में आपके समक्ष मौजूद है।
मैं उन तमाम विद्वानों-रचनाकारों-तांत्रिकों-ज्योतिषियों-पराविज्ञानियों नव उन तमाम ग्रन्थों तथा पुस्तकों और उनके लेखकों का आभारी हूँ जिन्होंने मेरा ज्ञान और अनुभव में असीम वृद्धि की और उस अनुभव व ज्ञान को इस पुस्तक के रूप में मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर सका।
‘‘भगवती पॉकेट बुक्स, आगरा’’ के प्रबन्ध निदेशक श्री राजीव अग्रवाल जी का मैं हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने निरन्तर मेरा हौसला बनाए रखकर इस पुस्तक की रचना में मुझे भरपूर सहयोग प्रदान किया और पुस्तक को सर्वांगीण सुन्दर बनाकर त्वरित गति से प्रकाशित करके आपकी सेवा में इसे प्रस्तुत किया। वास्तव में वे कोटिशत: धन्यवाद के पात्र हैं।
.............और अन्त में मैं उन सभी आलोचकों मित्रों, समीक्षकों एवं अशुभचिन्तकों का सदैव आभारी रहूँगा जिनके आलोच्यपूर्ण व्यवहार ने इस पुस्तक की रचना में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग प्रदान करके मुझे कुछ कर गुजरने का जज्बा प्रदान किया। अगर वे लोग नहीं होते तो इस वक्त ये पुस्तक आपके हाथों में नहीं होती।
आप सभी को मेरा कोटि-कोटि नमन।
मैं अभी तक भी नहीं जानता हूँ कि वो अज्ञात शक्ति कौन है और क्या चाहती है ? मुझे तो बस इतना ही याद है कि जब मैं एक अर्द्ध रात्रि को ‘ऑटोमैटिक राईटिंग’ (स्वाचालित लेख) के माध्यम से परलोक की किसी आत्मा से सम्पर्क करने में प्रयासरत था कि सहसा मेरे हाथों में विद्युत का-सा एक झटका लगा और मेरी कलम में हलचल होने लगी, जिसके फलस्वरूप कागज पर कलम स्वत: लिखने लगी कि- ‘‘तुम..........या..............नि..............कि..........तुम ही...........अब...........एक पु.......स्तक........लिखोगे........’’। तब मैंने ‘टैलीपैथी’ के माध्यम से जानना चाहा कि किसी प्रकार की पुस्तक लिखूँ और कैसे लिखूँ ? तो कलम ने फिर से लिखा- ‘‘पुस्तक का.....ना............म...........अलौकिक............श...........क्तियाँ........रखो............फिर.............अपने आप.........ही...........लिखते चले जा.....ओगे।’’ बस इसी प्रेरणा को संकलित करने पर जो परिणाम सामने आया वह इस पुस्तक के रूप में आपके समक्ष मौजूद है।
मैं उन तमाम विद्वानों-रचनाकारों-तांत्रिकों-ज्योतिषियों-पराविज्ञानियों नव उन तमाम ग्रन्थों तथा पुस्तकों और उनके लेखकों का आभारी हूँ जिन्होंने मेरा ज्ञान और अनुभव में असीम वृद्धि की और उस अनुभव व ज्ञान को इस पुस्तक के रूप में मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर सका।
‘‘भगवती पॉकेट बुक्स, आगरा’’ के प्रबन्ध निदेशक श्री राजीव अग्रवाल जी का मैं हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने निरन्तर मेरा हौसला बनाए रखकर इस पुस्तक की रचना में मुझे भरपूर सहयोग प्रदान किया और पुस्तक को सर्वांगीण सुन्दर बनाकर त्वरित गति से प्रकाशित करके आपकी सेवा में इसे प्रस्तुत किया। वास्तव में वे कोटिशत: धन्यवाद के पात्र हैं।
.............और अन्त में मैं उन सभी आलोचकों मित्रों, समीक्षकों एवं अशुभचिन्तकों का सदैव आभारी रहूँगा जिनके आलोच्यपूर्ण व्यवहार ने इस पुस्तक की रचना में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग प्रदान करके मुझे कुछ कर गुजरने का जज्बा प्रदान किया। अगर वे लोग नहीं होते तो इस वक्त ये पुस्तक आपके हाथों में नहीं होती।
आप सभी को मेरा कोटि-कोटि नमन।
प्रमोद सागर
अपनों से अपनी बात
प्रिय पाठको,
पिछले काफी समय से हमारे शुभचिन्तकों, मित्रों और ज्योतिष व तंत्र के जिज्ञासुओं की निरन्तर माँग चली आ रही थी कि इस संसार में व्याप्त आलौकिक एवं अद्भुत चमत्कारिक शक्तियों के रहस्य पर मैं अपनी कलम चलाऊँ और एक ऐसी पुस्तक की रचना करूँ जिसमें उन सभी शक्तियों के विषय में खुलासापूर्वक जानकारी प्राप्त हो सके।
आपकी भावनाओं और ज्ञान-पिपासा को समझते हुए हमने आपकी ही आकांक्षानुरूप पुस्तक तैयार करने का प्रयास किया जो कि इस वक्त आपके हाथों में मौजूद है। प्रस्तुत पुस्तक में आपकी समस्त जिज्ञासाओं को शान्त करने का हमने भरपूर प्रयास किया है।
मनुष्य उस परमपिता परमेश्वर का ही एक अंग है जिसकी शक्ति से ये सारी सृष्टि संचालित हो रही है। अगर हम उस महान शक्ति को अपनी साधना और अभ्यास से तनिक-सा भी स्पर्श कर लेने का प्रयास तक लेवें तो हम उस महान शक्ति के माध्यम से ईश्वर से साक्षात्कार करने में भी सफल हो सकते हैं।
यदि आप पूर्ण निष्ठा और लगन के साथ पुस्तक में वर्णित साधनाएँ करें तो कोई कारण नहीं है कि आप असम्भव दिखाई देने वाले कार्यों को भी सम्भव न करे सकें। आवश्यकता है तो सिर्फ आपके जागृत होने की।
मैं जानता हूँ कि आप में श्रद्धा, विश्वास और लगन के साथ भरपूर उत्सुकता भी मौजूद है, लेकिन इन सभी में अभी और वृद्धि करना आवश्यक है। तभी आप मंजिल को पा सकते हैं। किसी भी साधना या अभ्यास में शीघ्रता न करें। अपितु पुस्तक में वर्णित विवरण को भली-भाँति पढ़कर ही अगला कदम बढ़ाएँ। इसके बाद ही पूरे धैर्य और श्रद्धा के साथ अभ्यास करें और सफलता पायें।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि मेरा यह विनम्र प्रयास जिज्ञासुओं और प्रबुद्ध पाठकों के लिए बहुपयोगी सिद्ध होगा। मेरी यह कृति कैसे बन पड़ी है ? अपने विचारों एवं अमूल्य सुझावों से मुझे अवश्य ही अवगत करायें।
मैं आपके प्रत्येक पत्र का उत्तर देने के लिए कृत संकल्प हूँ। अतएव शीघ्रता से मुझे नि:संकोच पत्र लिखें। मैं इंतजार कर रहा हूँ।
पिछले काफी समय से हमारे शुभचिन्तकों, मित्रों और ज्योतिष व तंत्र के जिज्ञासुओं की निरन्तर माँग चली आ रही थी कि इस संसार में व्याप्त आलौकिक एवं अद्भुत चमत्कारिक शक्तियों के रहस्य पर मैं अपनी कलम चलाऊँ और एक ऐसी पुस्तक की रचना करूँ जिसमें उन सभी शक्तियों के विषय में खुलासापूर्वक जानकारी प्राप्त हो सके।
आपकी भावनाओं और ज्ञान-पिपासा को समझते हुए हमने आपकी ही आकांक्षानुरूप पुस्तक तैयार करने का प्रयास किया जो कि इस वक्त आपके हाथों में मौजूद है। प्रस्तुत पुस्तक में आपकी समस्त जिज्ञासाओं को शान्त करने का हमने भरपूर प्रयास किया है।
मनुष्य उस परमपिता परमेश्वर का ही एक अंग है जिसकी शक्ति से ये सारी सृष्टि संचालित हो रही है। अगर हम उस महान शक्ति को अपनी साधना और अभ्यास से तनिक-सा भी स्पर्श कर लेने का प्रयास तक लेवें तो हम उस महान शक्ति के माध्यम से ईश्वर से साक्षात्कार करने में भी सफल हो सकते हैं।
यदि आप पूर्ण निष्ठा और लगन के साथ पुस्तक में वर्णित साधनाएँ करें तो कोई कारण नहीं है कि आप असम्भव दिखाई देने वाले कार्यों को भी सम्भव न करे सकें। आवश्यकता है तो सिर्फ आपके जागृत होने की।
मैं जानता हूँ कि आप में श्रद्धा, विश्वास और लगन के साथ भरपूर उत्सुकता भी मौजूद है, लेकिन इन सभी में अभी और वृद्धि करना आवश्यक है। तभी आप मंजिल को पा सकते हैं। किसी भी साधना या अभ्यास में शीघ्रता न करें। अपितु पुस्तक में वर्णित विवरण को भली-भाँति पढ़कर ही अगला कदम बढ़ाएँ। इसके बाद ही पूरे धैर्य और श्रद्धा के साथ अभ्यास करें और सफलता पायें।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि मेरा यह विनम्र प्रयास जिज्ञासुओं और प्रबुद्ध पाठकों के लिए बहुपयोगी सिद्ध होगा। मेरी यह कृति कैसे बन पड़ी है ? अपने विचारों एवं अमूल्य सुझावों से मुझे अवश्य ही अवगत करायें।
मैं आपके प्रत्येक पत्र का उत्तर देने के लिए कृत संकल्प हूँ। अतएव शीघ्रता से मुझे नि:संकोच पत्र लिखें। मैं इंतजार कर रहा हूँ।
लेखक
1
अलौकिक शक्तियाँ
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक अलौकिक शक्ति विद्यमान है जो कि सृष्टि के
प्रत्येक पदार्थ पर समान रूप से अपना प्रभाव डालती है। इस शक्ति को
अलौकिकता और अगम्यता का अन्दाजा लगाना मुश्किल है। ये अलौकिक शक्तियाँ
संसार के प्रत्येक मनुष्य में सुप्तावस्था में रहती हैं। यही शक्ति हमें
प्रभावित करती है। ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहे ग्रह, नक्षत्र सितारों में
भी यही शक्ति विद्यमान होने के कारण इन ग्रह-नक्षत्रों की चाल से मनुष्य
के भाग्य और भविष्य के साथ-साथ उसकी शारीरिक और मानसिक क्रियाओं पर प्रभाव
पड़ता रहता है।
इसी प्रकार से रंगों और रत्नों का भी मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है। यानि की संसार की प्रत्येक जड़-चेतन, सजीव-निर्जीव पदार्थों में व्याप्त उस अज्ञात शक्ति का प्रभाव दूसरी अन्य वस्तुओं पर अवश्य परिलक्षित होता है। मनुष्य के अन्दर छिपी हुई शक्ति अन्य दूसरे मनुष्यों तथा वस्तुओं को प्रभावित करती है। मैं मनुष्य किसी भी प्राणी को सम्मोहित करके उससे मनोवांछित कार्य करवा सकता है अथवा सदैव के लिए अपने वशीभूत भी कर सकता है। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है उसी प्रकार से मनुष्य भी अपनी शक्तियों के बल पर जड़ अथवा चेतन पदार्थों को समान रूप से प्रभावित कर सकता है।
सारे संसार में एक अलौकिक तथा वृहद् चेतना फैली हुई है जिसके कारण ही प्राणियों एवं जड़-चेतन पदार्थों में पारस्परिक आकर्षण शक्ति के कारण ये सभी किसी अज्ञात शक्ति से एक-दूसरे से प्रभावित हैं। इस विराट चेतना के कारण ही संसार के समस्त प्राणी और जड़-चेतन पदार्थ पृथक्-पृथक् होकर भी सृष्टि का ही एक अभिन्न अंग हैं और इसी वजह से सृष्टि के समस्त पदार्थ उस सर्वव्यापक और अलौकिक चेतना की शक्ति के करिश्मे से एक-दूसरे से प्रभावित हैं। वैज्ञानिक इसे ‘ब्रह्माण्डीय ऊर्जा’ का नाम देते हैं लेकिन वे भी ब्रह्माण्ड में प्रवाहित अलौकिक शक्ति के अस्तित्व को खुले मन से स्वीकारते हैं।
प्राचीन ऋषि मुनि सृष्टि में प्रवाहित इस अलौकिक धारा से अपनी कठोर तपस्या के बल पर कुछ अंश प्राप्त करके उस आलौकिक धारा से इस प्रकार से जुड़ जाते थे कि किसी भी प्रकार का चमत्कार कर देना उनके लिए असम्भव नहीं था। यहाँ तक कि स्पर्श मात्र से मनुष्य के जीवन और विचारों को परिवर्तित करके उसे रोगमुक्त कर देना भी उनके बायें हाथ का खेल था। ईसाइयों के पवित्र ग्रन्थ बाईबिल के अनुसार प्रभु यीशु केवल हाथ के स्पर्श से लोगों के दु:ख-दर्द तथा कष्टों का निवारण कर देते थे। उनके हस्त स्पर्श मात्र से रोगियों की असाध्य से असाध्य बीमारियाँ भी नष्ट हो जातीं और रोगी पूर्णत: स्वस्थ हो जाते। वास्तव में यह एक ऐसी अलौकिक शक्ति होते हुए भी ऐसा भौतिक गुण है जो कि ब्रह्माण्ड में व्याप्त और प्रसारित अलौकिक धारा से सम्बद्ध है।
संसार के समस्त प्राणियों और ब्रह्माण्ड के समस्त ग्रह-नक्षत्र सितारों में व्याप्त विद्युत चुम्बकीय आकर्षण शक्ति के मध्य किसी न किसी प्रकार का घनिष्ठ
संबंध अवश्यमेव है जिसके परिणामस्वरूप ग्रहों की चाल के द्वारा मनुष्य के भाग्य में व्यापक परिवर्तन आ जाता है। प्रख्यात जीवविज्ञानी डॉ. फ्रैंकब्रोन के अनुसार विश्व के समस्त प्राणी ऐसे रिसीवर हैं जो कि सृष्टि में व्याप्त स्पंदन अर्थात् ‘ब्रह्माण्डीय ऊर्जा’ और संवेदनों तथा विद्युत चुम्बकीय तरंगों को ग्रहण करते रहे हैं। प्रख्यात अंतरिक्ष विज्ञानी एक्सैलफॉर्कोफ के अनुसार परमाणु से भी अतिसूक्ष्म कण ‘न्यूट्रिनी’ की भाँति व्यापक मानसिक चेतना से संपन्न ‘माइण्डोन’ नामक कणों द्वारा अतीन्द्रय संवेदनाएँ होती हैं जिनकी वजह से हमारा अवचेतन मन ब्रह्माण्डीय चेतना के साथ सम्बद्ध होकर अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न बन जाता है।
मूल रूप से यह निष्कर्ष निकलता है कि सर्वव्यापक अतीन्द्रिय शक्तियाँ मनुष्य के मन को प्रभावित करती हैं और मन की शक्तियों के द्वारा ही मनुष्य अन्य दूसरे मनुष्यों को प्रभावित करता है अर्थात् इन सम्पूर्ण घटनाक्रमों में मनुष्य के मन की शक्तियाँ ही समस्त अलौकिक शक्तियों का केन्द्र है तथा शक्तिशाली मन ही अतीन्द्रिय शक्तियों का संग्राहक होता है।
मनुष्य की चेतना ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से पृथक नहीं हो सकती और न ही उसकी शक्ति या उसकी सीमा को मर्यादित किया जा सकता है अर्थात् यह ब्रह्माण्डीय शक्ति मनुष्य की चेतना के माध्यम से ही प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर हो सकती है और यह चेतना मनुष्य के मन के अन्दर जागृत होती है। निर्विकार, वासनारहित, कामनारहित, दृढ़संकल्पी और सतोगुणी मनुष्य ही अपने मन की शक्तियों को पूर्णत: विकास करके अलौकिक शक्तियों को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य के मन में एक अद्भुत चेतना होती है जो कि उसके अवचेतन मन में छिपी हुई रहती है। यह अवचेतन मन की समस्त अद्भुत शक्तियों का केन्द्र और कोषागार है, परन्तु सांसारिक मोहमाया, वासनाओं, लालच और इच्छाओं के मोहपाश में बँधा हुआ मनुष्य अवचेतन मन की ओर ध्यान नहीं दे पाता है जिसके कारण वह सामान्य जीवनयापन करता है, परन्तु जो मनुष्य अपने अवचेतन मन की शक्तियों को पहचान कर, उनको विकसित करके, उनका उपयोग कर लेते हैं। उन मनुष्यों का मानवेतर सृष्टि से सम्पर्क स्थापित हो जाता है। और वे साधारण मानव से ऊपर उठकर ‘महामानव बन जाते हैं।
कहावत है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ अर्थात् मन को चंगा यानि की शक्तिशाली और विकसित कर लिया जाये तो मनुष्य के लिए इस दुनिया में कोई भी कार्य कर पाना सम्भव हो जाता है। वह अपने मन की शक्तियों को पूर्ण विकसित करके मनुष्य अथवा जड़-चेतन पदार्थ तो क्या अपितु सम्पूर्ण प्रकृति को ही अपने अनुकूल बनाकर उसे अपने अधीन कर सकता है। हिप्नोटिज्म, मैस्मेरिज्म, वशीकरण, मोहिनी विद्या, रेकी, टेलीपैथी, इत्यादि तो मन की अगाध शक्ति के तुच्छ उदाहरण हैं। पूरे ब्रह्माण्ड में अलौकिक शक्तियों का अस्तित्व विद्यमान है और मानव के लिए उन समस्त शक्तियों पर नियन्त्रण स्थापित कर लेना कोई असम्भव कार्य नहीं है। प्रत्येक मनुष्य में अन्त:शक्ति होती है और इन अन्त:शक्तियों को विकसित करके वह अखिल ब्रह्माण्ड में बह रही अलौकिक धारा से सम्पर्क स्थापित करके उससे अंश प्राप्त करके अलौकिक शक्तियों का स्वामी बन सकता है। आवश्यकता है तो सिर्फ दृढ़ संकल्प, अटूट आत्मविश्वास और मन की एकाग्रता की। आप प्रयास करें और अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त करें। हमारी शुभकामनाएँ सदैव आपके साथ हैं।
इसी प्रकार से रंगों और रत्नों का भी मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है। यानि की संसार की प्रत्येक जड़-चेतन, सजीव-निर्जीव पदार्थों में व्याप्त उस अज्ञात शक्ति का प्रभाव दूसरी अन्य वस्तुओं पर अवश्य परिलक्षित होता है। मनुष्य के अन्दर छिपी हुई शक्ति अन्य दूसरे मनुष्यों तथा वस्तुओं को प्रभावित करती है। मैं मनुष्य किसी भी प्राणी को सम्मोहित करके उससे मनोवांछित कार्य करवा सकता है अथवा सदैव के लिए अपने वशीभूत भी कर सकता है। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है उसी प्रकार से मनुष्य भी अपनी शक्तियों के बल पर जड़ अथवा चेतन पदार्थों को समान रूप से प्रभावित कर सकता है।
सारे संसार में एक अलौकिक तथा वृहद् चेतना फैली हुई है जिसके कारण ही प्राणियों एवं जड़-चेतन पदार्थों में पारस्परिक आकर्षण शक्ति के कारण ये सभी किसी अज्ञात शक्ति से एक-दूसरे से प्रभावित हैं। इस विराट चेतना के कारण ही संसार के समस्त प्राणी और जड़-चेतन पदार्थ पृथक्-पृथक् होकर भी सृष्टि का ही एक अभिन्न अंग हैं और इसी वजह से सृष्टि के समस्त पदार्थ उस सर्वव्यापक और अलौकिक चेतना की शक्ति के करिश्मे से एक-दूसरे से प्रभावित हैं। वैज्ञानिक इसे ‘ब्रह्माण्डीय ऊर्जा’ का नाम देते हैं लेकिन वे भी ब्रह्माण्ड में प्रवाहित अलौकिक शक्ति के अस्तित्व को खुले मन से स्वीकारते हैं।
प्राचीन ऋषि मुनि सृष्टि में प्रवाहित इस अलौकिक धारा से अपनी कठोर तपस्या के बल पर कुछ अंश प्राप्त करके उस आलौकिक धारा से इस प्रकार से जुड़ जाते थे कि किसी भी प्रकार का चमत्कार कर देना उनके लिए असम्भव नहीं था। यहाँ तक कि स्पर्श मात्र से मनुष्य के जीवन और विचारों को परिवर्तित करके उसे रोगमुक्त कर देना भी उनके बायें हाथ का खेल था। ईसाइयों के पवित्र ग्रन्थ बाईबिल के अनुसार प्रभु यीशु केवल हाथ के स्पर्श से लोगों के दु:ख-दर्द तथा कष्टों का निवारण कर देते थे। उनके हस्त स्पर्श मात्र से रोगियों की असाध्य से असाध्य बीमारियाँ भी नष्ट हो जातीं और रोगी पूर्णत: स्वस्थ हो जाते। वास्तव में यह एक ऐसी अलौकिक शक्ति होते हुए भी ऐसा भौतिक गुण है जो कि ब्रह्माण्ड में व्याप्त और प्रसारित अलौकिक धारा से सम्बद्ध है।
संसार के समस्त प्राणियों और ब्रह्माण्ड के समस्त ग्रह-नक्षत्र सितारों में व्याप्त विद्युत चुम्बकीय आकर्षण शक्ति के मध्य किसी न किसी प्रकार का घनिष्ठ
संबंध अवश्यमेव है जिसके परिणामस्वरूप ग्रहों की चाल के द्वारा मनुष्य के भाग्य में व्यापक परिवर्तन आ जाता है। प्रख्यात जीवविज्ञानी डॉ. फ्रैंकब्रोन के अनुसार विश्व के समस्त प्राणी ऐसे रिसीवर हैं जो कि सृष्टि में व्याप्त स्पंदन अर्थात् ‘ब्रह्माण्डीय ऊर्जा’ और संवेदनों तथा विद्युत चुम्बकीय तरंगों को ग्रहण करते रहे हैं। प्रख्यात अंतरिक्ष विज्ञानी एक्सैलफॉर्कोफ के अनुसार परमाणु से भी अतिसूक्ष्म कण ‘न्यूट्रिनी’ की भाँति व्यापक मानसिक चेतना से संपन्न ‘माइण्डोन’ नामक कणों द्वारा अतीन्द्रय संवेदनाएँ होती हैं जिनकी वजह से हमारा अवचेतन मन ब्रह्माण्डीय चेतना के साथ सम्बद्ध होकर अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न बन जाता है।
मूल रूप से यह निष्कर्ष निकलता है कि सर्वव्यापक अतीन्द्रिय शक्तियाँ मनुष्य के मन को प्रभावित करती हैं और मन की शक्तियों के द्वारा ही मनुष्य अन्य दूसरे मनुष्यों को प्रभावित करता है अर्थात् इन सम्पूर्ण घटनाक्रमों में मनुष्य के मन की शक्तियाँ ही समस्त अलौकिक शक्तियों का केन्द्र है तथा शक्तिशाली मन ही अतीन्द्रिय शक्तियों का संग्राहक होता है।
मनुष्य की चेतना ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से पृथक नहीं हो सकती और न ही उसकी शक्ति या उसकी सीमा को मर्यादित किया जा सकता है अर्थात् यह ब्रह्माण्डीय शक्ति मनुष्य की चेतना के माध्यम से ही प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर हो सकती है और यह चेतना मनुष्य के मन के अन्दर जागृत होती है। निर्विकार, वासनारहित, कामनारहित, दृढ़संकल्पी और सतोगुणी मनुष्य ही अपने मन की शक्तियों को पूर्णत: विकास करके अलौकिक शक्तियों को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य के मन में एक अद्भुत चेतना होती है जो कि उसके अवचेतन मन में छिपी हुई रहती है। यह अवचेतन मन की समस्त अद्भुत शक्तियों का केन्द्र और कोषागार है, परन्तु सांसारिक मोहमाया, वासनाओं, लालच और इच्छाओं के मोहपाश में बँधा हुआ मनुष्य अवचेतन मन की ओर ध्यान नहीं दे पाता है जिसके कारण वह सामान्य जीवनयापन करता है, परन्तु जो मनुष्य अपने अवचेतन मन की शक्तियों को पहचान कर, उनको विकसित करके, उनका उपयोग कर लेते हैं। उन मनुष्यों का मानवेतर सृष्टि से सम्पर्क स्थापित हो जाता है। और वे साधारण मानव से ऊपर उठकर ‘महामानव बन जाते हैं।
कहावत है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ अर्थात् मन को चंगा यानि की शक्तिशाली और विकसित कर लिया जाये तो मनुष्य के लिए इस दुनिया में कोई भी कार्य कर पाना सम्भव हो जाता है। वह अपने मन की शक्तियों को पूर्ण विकसित करके मनुष्य अथवा जड़-चेतन पदार्थ तो क्या अपितु सम्पूर्ण प्रकृति को ही अपने अनुकूल बनाकर उसे अपने अधीन कर सकता है। हिप्नोटिज्म, मैस्मेरिज्म, वशीकरण, मोहिनी विद्या, रेकी, टेलीपैथी, इत्यादि तो मन की अगाध शक्ति के तुच्छ उदाहरण हैं। पूरे ब्रह्माण्ड में अलौकिक शक्तियों का अस्तित्व विद्यमान है और मानव के लिए उन समस्त शक्तियों पर नियन्त्रण स्थापित कर लेना कोई असम्भव कार्य नहीं है। प्रत्येक मनुष्य में अन्त:शक्ति होती है और इन अन्त:शक्तियों को विकसित करके वह अखिल ब्रह्माण्ड में बह रही अलौकिक धारा से सम्पर्क स्थापित करके उससे अंश प्राप्त करके अलौकिक शक्तियों का स्वामी बन सकता है। आवश्यकता है तो सिर्फ दृढ़ संकल्प, अटूट आत्मविश्वास और मन की एकाग्रता की। आप प्रयास करें और अद्भुत शक्तियाँ प्राप्त करें। हमारी शुभकामनाएँ सदैव आपके साथ हैं।
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