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स्वर्णिम उजाले नेह के

शीतल बाजपेयी

प्रकाशक : सोशल रिसर्च फाउन्डेशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15507
आईएसबीएन :978-81-941349-4-7

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शीतल जी का हृदयस्पर्शी काव्य संग्रह

Swarnim Ujaale Neh Ke - Hindi Poetry by Sheetal Bajpayee

अपनी बात

मेरी पहली कृति आपके हाथ में है,कब मुझे काव्याकर्षण हुआ ये कहना तो बहुत मुश्किल है, बहुत छोटी थी तब पापा को कैसेट लगा कर गजलें सुनते देखा करती थी, वे शाम को आफिस से आकर आंगन में चारपाई पर लेट जाते और अपनी पसंदीदा गीत-गज़ल सुना करते, मुझे कुछ भी समझ नही आता सिवाय इसके कि पापा ने वाहह कहा है तो कुछ अच्छा ही होगा। धीरे-धीरे वे सारे गीत ग़ज़ल मुझे याद होने लगे, बिना उनका अर्थ जाने।

दूरदर्शन पर जब भी कवि सम्मेलन आता तो पापा जरूर देखते और मैं उनका चेहरे के भाव देखकर समझती कि ये कैसी कविता थी। वे हँसते तो मैं भी खुश होकर ताली बजा देती अगर वे गम्भीर हो जाते तो मैं समझती की कोई बड़ी ही बात होगी। बस यहीं से शुरुआत हुई काव्य प्रेम की, तुकबंदी करना मेरा पसंदीदा खेल बन गया। किसी का जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो, नव वर्ष हो, दीवाली हो मुझे तो बस बहाने चाहिए थे तुकबंदी करने के। पापा हर तुकबंदी की तारीफ करते, जबकि मुझे शिल्प, मात्रा, विधा आदि का कोई ज्ञान नहीं था, पर तुलसीबाबा कह गये हैं ना--

जो बालक कहि तोतरी बाता।
सुनहिं मुदित मन पितु और माता।।

बिल्कुल उसी तरह मेरे माता-पिता ने भी मेरी हर कमी को नजरअंदाज करते हुये हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया। कब डायरी मेरी सहेली बन गयी मुझे पता ही नहीं चल पाया। मन, पन्नों पर शब्दों के चित्र उकेरने लगा समय के साथ। शिल्प-विधान, मात्रा-गणना, आदि काव्य व्याकरण के विषय में जो थोड़ा बहुत ज्ञान है वो फूफा जी डॉ. कमलेश द्विवेदी जी के मार्गदर्शन में सीख रही हूँ, उन्होंने हमेशा मेरा मनोबल बढ़ाया।

1992-93 में मुझे पहली काव्य गोष्ठी में ले जाने से लेकर आज तक वे अभिभावक की भांति सदा मेरा मार्गदर्शन करते रहे हैं।

डॉ. सुषमा त्रिपाठी जी मेरी हिंदी की शिक्षिका रही हैं, का स्नेहिल सानिध्य सदैव मेरा मनोबल बढ़ाता है। एक अरसे के बाद अचानक उनके दर्शन महिला काव्य गोष्ठी में हुये तो शब्द तरल होकर नैंनो से छलक गये। विद्यालय के दिनों में जिनके व्यक्तित्व ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वे डॉ. सुषमा त्रिपाठी जी ही हैं, विनम्रता संग वैदुष्य लगभग अप्राप्य है इस जग में परंतु मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में हूँ जिन्हें न केवल उनके दर्शन प्राप्त हुये हैं बल्कि उनसे स्नेहिल आशीष भी मिलता है।

हिंदी के प्रति आकर्षण भी सुषमा त्रिपाठी जी के सानिध्य में बढ़ता गया।

ईश्वर जन्म के साथ एक परिवार देता है, फिर एक परिवार विवाह के पश्चात मिलता है, मुझे एक और परिवार माँ वागेश्वरी की कृपा से मिला और वो है साहित्यिक परिवार, जिसमें भाई-बहन-चाचा-ताऊ-चाची- भाभी आदि सभी रिश्ते मिले। बड़ों से स्नेह मिला तो छोटों से सम्मान।

मैं अपने साहित्यिक परिवार के सभी सदस्यों का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।

नगर की अनेक साहित्यिक संस्थाओं ने अपने साहित्यिक अनुष्ठानों में मुझे अवसर प्रदान किया जिसमे मुझे नगर के वरिष्ठ साहित्यकारों को सुनने व अपनी रचनाओं को सुनाने सौभाग्य प्राप्त हुआ। साहित्यिक परिवार के सभी बड़े रचनाकारों ने समय-समय पर मुझे उचित सलाह भी दी, मेरा मार्गदर्शन भी किया। कभी रचना की कमियों को बताया तो कभी श्रेष्ठ रचना बताकर प्रोत्साहित भी किया। तरंग, विकासिका, मानसरोवर, वाणी, साहित्यसमज्या, व्रज इंद्रा अभिव्यक्ति मंच, श्यामार्चना फाउंडेशन जैसी नगर की बड़ी साहित्यिक संस्थायें तो जैसे मेरी ही संस्थायें बन गयीं।

डॉ. शिव कुमार दीक्षित जी जिनका सानिध्य संबल है मेरे लिये। उनके पास मेरी हर जिज्ञासा का समाधान है, जब भी कोई विचार मुझे उलझा लेता है, उसे सुलझाने का इतना सरल तरीका बता देते हैं जैसे कह रहे हों, बस इतनी सी बात। उनके सानिध्य में अंधकार का कालापन सिमटकर अक्षरों में बदलने लगता है, जिसे वे ज्ञान के प्रकाश में मंत्र में परिवर्तित कर जीवनोपयोगी बना देते हैं।

डॉ. शिव ओम अम्बर जी जैसे संत व्यक्तित्व के दर्शन से नेत्र, श्रवण से विचार, व कृतियों को पढ़कर चिंतन पावन हो जाता है।

आध्यात्मिक जिज्ञासा हो, या कितना भी जटिल प्रश्न हो सभी के सरल उत्तर मिल जाते हैं मुझे, माँ वागेश्वरी की कृपा है जो आदरणीय का स्नेहिल आशीष मुझे मिलता है।

आदरणीय शिव कुमार सिंह 'कुंवर' जी जिनके गीत पढ़कर कानपुर के आधे से अधिक लोग गीत को समझ सके व उनसे प्रेरित होकर कवि बने, उनका स्नेह मेरे गीतों मिलना माँ की कृपा ही तो है।

पूज्य शिव त्रयी का सानिध्य व आशीर्वाद मिलना मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है, मेरे जीवन का स्वप्न है, किसी दिन तीनों एक साथ एक स्थान पर हों, ताकि मैं तीनों का आशीर्वाद प्राप्त कर माँ वागेश्वरी की कृपा पर रीझ सकूँ। जिस प्रकार बेलपत्र के तीन पर्ण एक दुर्बल तंतु से जुड़कर उसे इतना सामर्थ्यवान बना देते हैं कि उसकी दुर्बलता दिखाई ही नहीं देती, ठीक उसी तरह से शिव त्रयी के सानिध्य में मेरी साहित्यिक दुर्बलता क्षीण हो जायेगी ऐसा मुझे विश्वास है।

आप तीनों के पास अध्ययन व अनुभव का ज्ञान दीप है जो मेरे अज्ञानता के तिमिर को काटने में समर्थ है।

पुस्तक के प्रकाशक भाई राजीव मिश्र का बहुत आभार जो उन्होंने मेरी रचनाओं को सुन्दर पुस्तक का रूप दिया।

आभार के क्रम में अपने भाई अमित मिश्रा और दोनों भाभी विभा मिश्रा व आकांक्षा मिश्रा का भी आभार व्यक्त करती हूँ जो हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते हैं, लक्ष्य और लावण्या मेरी कवितायेँ गुनगुनाकर मुझे सुनाते हैं, लावण्या जब मेरी नकल कर के मुझे दिखाती है तो मन से स्नेह हरसिंगार की तरह झरने लगता है। आप सभी का जितना भी आभार व्यक्त करूँ कम है।

पर कुछ लोग हैं मेरे जीवन में जिनका मैं आभार व्यक्त कर ही नहीं सकती, और वो हैं मेरी माँ (श्रीमती मधु मिश्रा) जो दिन-रात मेरे लिये प्रार्थना करती रहती हैं, पापा के जाने के बाद उन्होंने माँ और पापा दोनों की भूमिका निभाई। विपरीत परिस्थितियों में हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया और कहा तुम क्यों परेशान होती हो.. अभी मैं जिंदा हूँ।

जहाँ बेटी को विदा करने के बाद माता-पिता अपने कर्तव्य की इति श्री मान लेते हैं, वहीं मेरे माँ-पापा ने मुझे अपने बेटों के समान ही अधिकार दिये।

दूसरा मेरा छोटा भाई आनंद मिश्रा मेरी हिम्मत, मेरा संबल, मेरा सबसे बड़ा आलोचक / प्रशंसक। हर छोटी से छोटी बात का ध्यान रखने वाला। वो मुझे कभी निराश/ हताश नहीं देख सकता।

'हार जाना बुरा नहीं है, कोशिश न करना बुरा है" कहकर अक्सर मुझे प्रोत्साहित करता है, कभी-कभी लगता है कि उसके रूप में पापा मुझसे बात करते हैं।

तीसरा है मेरा बेटा अवि (अविरल बाजपेयी) जिसने मेरे जीवन में अचानक से आई व्यस्तता का सम्मान किया, कभी गोष्ठी में जाना है या किसी साहित्यिक आयोजन में तो उसने हमेशा मेरा साथ दिया, बिना कोई शिकायत किये। मेरे कितने ही गीत-ग़ज़ल-मुक्तक उसको याद हैं।

मोबाइल-कम्प्यूटर की तकनीकी जानकारी वही सिखाता है। मेरा नन्हा सा बेटा जिसे मैंने उँगली पकड़कर अक्षर-ज्ञान कराया आज मेरी उँगली पकड़ मुझे कम्प्यूटर चलाना सिखाता है और मेरी कृति के लिये कम्पोजिंग से लेकर टाइपिंग सब उसी ने ही की है। और... जिनके सहयोग के बिना एक कदम भी नहीं चल सकती थी वो हैं मेरे पति श्री निखिल वाजपेयी। दुनियाँ में बहुत ही कम पति होंगे जो चाहेंगे कि मेरी पत्नी को सफलता मिले और उसके लिये हर कदम पर हाथों को थाम कर आगे बढ़ाये, प्रोत्साहित करें। मेरी हर रचना के पहले श्रोता हैं वे, हर रचना को वे बहुत ही उत्साह से सुनते हैं उसकी कमी या अच्छाई भी बताते हैं, उस पर चर्चा भी करते हैं। कभी यदि मैं इस राह की नकारात्मता को लेकर चिंतित हो जाऊँ तो वे सदैव यही कहते है कि दुनियाँ का कोई भी मार्ग ऐसा नहीं जहाँ कमियाँ न हों, सकारात्मक विचारों व धैर्य के साथ आगे बढ़ो। तुम्हारे साथ बड़ों का आशीर्वाद है और आशीर्वाद में ईश्वर का वास होता है।

ये चार स्तम्भ हैं मेरे जीवन के जिनको आभार कह ही नहीं सकती। मैं जो कुछ भी लिख सकी वो माँ वागेश्वरी की कृपा, बड़ों के आशीर्वाद व स्नेह, छोटों के अपनत्व की शक्ति से ही संभव हो सका है।

मैंने शब्दों की माटी में केवल कुछ अहसास मिलाये।
आगे माँ वाणी की इच्छा जैसी भी मूरत बन जाये।।

अंत में पुनः सभी का आभार व्यक्त करती हूँ जिन्होंने परोक्ष या अपरोक्ष रूप में कभी भी मेरा सहयोग किया या मेरा मार्गदर्शन किया।

आप सभी को मेरा सादर अभिवादन। माँ वागेश्वरी से प्रार्थना है कि आप सबका स्नेह व आशीर्वाद यूँ ही मिलता रहे।

- शीतल वाजपेयी


अनुक्रमणिका

कविता का आस्थान मंडप
प्रस्तावना
शीतल की स्वर्णिम अभिव्यक्तियाँ
अपनी बात

  • वाणी वंदना
  • एक दिन सूरज उगाकर
  • बेटे भी प्यारे होते हैं
  • मंजीरे मन के
  • अम्मा तुम अब भी घर में हो
  • जीवन की राहों में हमको
  • मैं बाबुल की प्यारी चिड़िया
  • दिन बचपन के
  • आशा का संदेश
  • और मोहब्बत थोड़ी सी
  • यादों की सोंधी खुशबू
  • और तुम
  • छिटक जाती हैं जब किरनें   
  • अपना सूरज उगा लिया
  • मन को रख लें
  • अम्मा पाटे पर सेंदुर से
  • शब्द की जब अर्थ से अनबन हुई
  • हुनर पर जब
  • मन पाषाण हुआ जाता है
  • मेरी खामोशी को पढ़ना
  • भौतिकता के नये दौर नें
  • प्रेम का प्रतिदान दे दो
  • आया बसंत झूमें
  • मन मकरंद हुआ
  • कुछ खट्टे कुछ मीठे लम्हें
  • खिलौना
  • आसमाँ पर फिर
  • नफरतों की आँधियाँ
  • माँ ने दीप जलाया
  • सच्चाई का पथ
  • ओ बाबुल क्यों भेजा मुझको
  • प्रेम का दीपक जला लूँ
  • समय उड़ रहा पंख लगाकर
  • अब तो आकर लेव खबरिया
  • ऐसी मुरली धरो अधर पे
  • रंगमंच पर जीवन के
  • गीतों की जागीर
  • सुविधाओं के लालच में
  • बचपन जी लेते हैं हम
  • मेरा सपना
  • लब सूखे हैं आँखें नम
  • तुम्हारा चित्र
  • इतनी बार पुकारो खुद को
  • इंतजार
  • सम्बंधों का शीशमहल
  • निश्चित ही सब अच्छा होगा
  • तस्वीरें नम हैं
  • सत्य हूँ मैं
  • गीत मधुरिम गा रही हूँ
  • ऐसा दीप जलाओ
  • कहीं गीत मिल जाये
  • सुबह के गीत गाना
  • तन्हाईयों के स्याह पल
  • कभी खुद से मिले क्या ?
  • प्रीत की थाल में दीप विश्वास का
  • अंश तुम्हारा हूँ
  • जब से देखा तुमको
  • क्यों ये नौबत आई है
  • सुधियों  के रंग
  • चंद्रमा की मधुर रश्मियाँ
  • घूँघट
  • मिल जाये जो साथ तुम्हारा
  • मन के चौबारे में
  • जब देखा गुलाब को मैंने

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