संस्कृति >> मन के दस संसार मन के दस संसारसंजीव तुलस्यान
|
0 5 पाठक हैं |
मन के दस संसार
प्रस्तुत पुस्तक आज के तथाकथित विकसित अर्थात भौतिक सरंजामों से भरे ज़माने में हमें हमारी वास्तविक स्थितियों से रू-ब-रू कराती है। सूचकांकों और आँकड़ों की दुनिया में हम सुखी दिखते हैं, क्योंकि हमारे पास आरामदायक आवासीय व्यवस्था, लक्ज़री गाड़ियाँ, कीमती परिधान, लज़ीज़ व्यंजन, अच्छा-खासा बैंक बैलेंस और यहाँ तक कि मनमुताबिक प्रेमी-प्रेमिकाएँ हैं। फिर भी हम अपने जीवन में बेचैनी महसूस करते हैं।
प्रतिस्पर्धा की सनक ने हमें परेशान कर रखा है। हम सुख में भी वर्चस्व तलाशने लगे हैं। यह सब मानसिक व्याधियाँ हैं जो हमें यातना अथवा नरक की ओर धकेल रही हैं। इन स्थितियों से आपका उद्धार कोई दूसरा नहीं कर सकता, इसका समाधान निजी स्तर पर स्वयं आपको निकालना होगा। यातना भरी दुनिया के बीच सम्बुद्ध बनना सम्भव है, यदि हम सम्यक प्रयास करें। यह पुस्तक इस दिशा में हमारी मदद कर सकती है।
- प्रेमकुमार मणि
|