गीता प्रेस, गोरखपुर >> दोहावली दोहावलीहनुमानप्रसाद पोद्दार
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तुलसीदास कृत दोहावली। इस पुस्तक में तुलसीदास ने दोहों के रूप में राममहिमा का बखान बड़े सुन्दर ढंग से किया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
राम नाम जपि जीहँ जन भए सुकृत सुखसालि।
तुलसी इहाँ जो आलसी गयो आजु की कालि।।
तुलसी इहाँ जो आलसी गयो आजु की कालि।।
भावार्थ—तुलसीदास जी कहते हैं कि जीभसे रामनाम का जप करके लोग
पुण्यात्मा और परम सुखी हो गये; परंतु इस नामजप में जो आलस्य करते हैं,
उन्हें आज या कल नष्ट ही हुआ समझो।।12।।
नाम गरीबनिवाज को राज देत जन जानि।
तुलसी मन परिहरत नहिं घुर बिनिआ ही बानि।।
तुलसी मन परिहरत नहिं घुर बिनिआ ही बानि।।
भावार्थ—तुलसीदासजी कहते हैं कि गरीबनिवाज (दीनबन्धु) श्रीरामजीका
नाम ऐसा है, जो जपनेवाले को भगवान का निज जन जानकर राज्य (प्रजापति का पद
या मोक्ष-साम्राज्य तक) दे डालता है। परंतु यह मन ऐसा अविश्वासी और नीच है
कि घूरे (कूड़े के ढेर) में पड़े दाने चुगने की ओछी आदत नहीं छोड़ता
(अर्थात् गंदे विषयों में ही सुख खोजता है)।।13।।
कासीं बिधि बसि तनु तजें हठि तनु तजें प्रयाग।
तुलसी जो फल सो सुलभ राम नाम अनुराग।।
तुलसी जो फल सो सुलभ राम नाम अनुराग।।
भावार्थ—तुलसीदासजी कहते हैं कि काशीमें (पापों से बचते हुए)
विधिवत् निवास करके शरीर त्यागने पर और तीर्थराज प्रयाग में हठसे शरीर
छोड़ने पर जो मोक्षरूपी फल मिलता है, वह रामनाम में अनुराग होने से सुगमता
से मिल जाता है। (यही नहीं; अनुरागपूर्वक रामनामके जापसे तो मोक्ष के आधार
साक्षात् भगवान् की प्राप्ति हो जाती है)।।14।।
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