लेख-निबंध >> भारतीय कला के अंतर्संबंध भारतीय कला के अंतर्संबंधनर्मदा प्रसाद उपाध्याय
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भारतीय कला का मर्म उसका सौंदर्य पक्ष है और पाश्चात्य सौदर्य की अवधारणा से भारतीय अवधारणा का साम्य नहीं है। भारतीय कला में ना तो क्लिष्टता है और ना ही दुरूहता। वह नैसर्गिक है। हमारे दर्शन के अनुसार तो जीवन जीना ही अपने आप में एक कला है। वास्तव में कला अरूप का ऐसा मोहक स्वरूप है जो चित्र, शिल्प और स्थापत्य जैसे रूपों में दिखाई देता है। इस पुस्तक में कुल आठ निबंध हैं जो भारतीय कला के साहित्य से अंतर्सबंध, उसकी लोक दृष्टि, मध्य भारत की अचीन्ही चित्र शैलियाँ जैसे विषयों पर हैं। निबंध के साथ आख्यान चलते हैं जो निबंधों को रोचक बनाते हैं।
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