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गांधी के फीनिक्स

प्रभात ओझा

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15715
आईएसबीएन :9788123795850

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गांधी के फीनिक्स

पिछली शताब्दी के प्रारम्भ में दीर्घकाल की विदेशी सत्ता के विरुद्ध आवाज उठाना आसान नहीं था। ऐसे में मोहनदास करमचंद गांधी ने जब अंग्रेजों के शासन को भारत पर अत्याचार की तरह बताना शुरू किया, देश के आमजन में एक उम्मीद का संचार हुआ। सच भी है कि युगांतरकारी कृत्य के जनक बापू अमर है, उनके बारे में कहीं से भी चिंतन हो, लगता है कि उसे और अधिक विस्तार देने की आवश्यकता है। यही कारण है कि आज गांधीजी के बारे में नित नई पुस्तकों के आगे के बाद भी ‘कुछ और’ की प्रतीक्षा रहती है।

जिस सत्याग्रह और अहिंसा के रास्ते भारत की आजादी का सूत्रपात हुआ था, उसका पहला प्रयोग गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में ही किया था। वे स्वदेश लौटे तो प्रारम्भ में उनके प्रयोग की पुनरावृत्ति को सहज ही स्वीकार नहीं किया गया। अलग बात है कि समय के साथ न केवल सत्य और अहिंसा, वरन जीवन का शायद ही कोई पक्ष बचा हो, जिसपर गांधी के विचार को गंभीरता से नहीं लिया गया। ये विचार जीवन और समाज को देखने की विशिष्ट दृष्टि प्रदान करते हैं। स्वयं गांधी डरबन के करीब स्थापित जिस फीनिक्स आश्रम से जुड़कर लंबे तक इन विचार-श्रृंखला से गुजरते रहे, उसे यूनानी मान्यता के अविनाशी पक्षी से जोड़कर ही देखा जाना चहिए। इस अर्थ में गांधी का हर विचार स्वयं में फीनिक्स है। इनमें से कुछ प्रमुख बिंदुओं पर पुनर्विचार संकलन देखना आकर्षक हो सकता है। दर्शन और समाज समीक्षण से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार बनवारी की कलम से गांधी की सभ्यता दृष्टि को समझना आसान हो सकता है। प्रसिद्ध पत्रकार रामबहादुर राय की गहन समीक्षा और सहन शैली ‘महात्मा’ को राजनीतिज्ञ बताते हुए आकर्षित करती है। आइआइटी दिल्ली से शिक्षा प्राप्त और समाजवादी नेताओं के सानिध्य में रहे पवन कुमार गुप्त आज भी गांधी को समझने की आवश्कता निरूपित करते हैं। गांधी के रास्ते चले और विदेशों में हिन्दीसेवी जर्मनी निवासी, स्वाधीनता सेनानी इंदुप्रकाश पाण्डेय अपने 96 साल की वय में आकर गांधी को किस रूप में याद करते हैं, देखा जा सकता है। स्वयं परम्परागत और संस्कृत शिक्षा प्राप्त करने के बाद प्रचलित शिक्षा और शिक्षण से सम्बंध पुषराज लंबे समय से गांधी को समझते परखते रहे हैं। एक स्वतंत्रता सेनानी के वंशज पत्रकार प्रभात ओझा ने भी ‘स्वच्छाग्रही’ गांधी को पुनर्प्रस्तुत किया है। ये सभी विचार मोहनदास करमचंद गांधी, महात्मा गांधी, बापू, राष्ट्रपिता के बहुचर्चित पक्ष के इर्दगिर्द अन्य बिंदुओं की ओर भी ध्यान आकृष्ट करते हैं।

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