आलोचना >> दलित आंदोलन और बांग्ला साहित्य दलित आंदोलन और बांग्ला साहित्यकृपाशंकर चौबे
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दलित आंदोलन और बांग्ला साहित्य
वर्ण व्यवस्था बहुत पुरानी है, जातिया परवर्ती काल में बनीं जिसका आधार जन्म को माना गया। वहीं से जातिभेद और छुआछूत ने जन्म लिया। इस पुस्तक के पहले ही अध्याय में जातिभेद तथा छुआछूत के खिलाफ चलनेवाले विमर्श की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में अध्ययन का क्षेत्र मुख्यत: पश्चिम बंगाल तथा पूर्वाेत्तर भारत है। पश्चिम बंगाल से लेकर पूर्वाेत्तर भारत के त्रिपुरा तक में दलितों के साथ जातिगत भेदभाव की झलक हम बांग्ला साहित्यकार अद्वैतमल बर्मन, पूर्वाेत्तर भारत के बांग्ला साहित्यकार अनिल सरकार और उनके समानधर्मा अन्य दलित लेखकों के साहित्य में पा सकते हैं। जातिगत भेदभाव के खिलाफ बंगाल तथा पूर्वाेत्तर, खासकर त्रिपुरा के दलित एकजुट होकर पिछले कई वर्षों से आंदोलन चला रहे हैं। यह पुस्तक बंगाल और त्रिपुरा में दलित आंदोलन के इतिहास का विशद परिचय देते हुए बांग्ला में दलित कविता, दलित उपन्यास और दलित आत्मकथा, बांग्ला में आदिवासी केंद्रित साहित्य और पूर्वाेत्तर के जनजातीय काव्य साहित्य पर प्रकाश डालती है। इस पुस्तक के अध्ययन से पता चलेगा कि बंगाल से लेकर त्रिपुरा, यहां तक कि बांग्लादेश का सामाजिक ढांचा भी जातिगत पूर्वाग्रह से कितना प्रभावित रहा है ? पुरातन काल से ही बांग्लाभाषी समाज में ऊंचे पायदान पर बैठे सवर्णों का ही बोलबाला क्यों है ? जीवन के हर क्षेत्र में समाज के प्रभावी और सक्षम वर्ग–जाति के लोगों की उपस्थिति प्रमुखता से क्यों है और हाशिए के लोग क्यों अनुपस्थित हैं ?
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