नई पुस्तकें >> भारत में सामाजिक न्याय एवं नारीवादी चिन्तन भारत में सामाजिक न्याय एवं नारीवादी चिन्तनडॉ. बिपिन चन्द्र कौशिक
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भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था
भारत में सामाजिक न्याय की अवधारणा आधुनिक है। किन्तु नारी अस्मिता एवं गौरव का स्थान सनातन काल से स्थापित है। पूर्व मध्यकाल से पहले गणतंत्रात्मक राजव्यवस्था में बौद्धकाल में महिलाओं को गौरवशाली स्थान प्राप्त था। पूर्व मध्यकाल, मध्यकाल एवं उपनिवेशवादी शासन व्यवस्था में महिलाओं की पहचान एवं भागीदारी क्षीण होती गयी।
स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय संविधान में महिलाओं की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं आजीविका को लेकर अनेकों प्रावधान किए गये। वर्तमान समय में नारी को सामाजिक न्याय दिलाने के कानूनी प्रावधान तो हैं किन्तु सामाजिक संवेदनहीनता एवं जागरूकता के अभाव में नारी आज भी उपेक्षित है। अपनी जनसंख्या के अनुपात में सहभागी नहीं है। अनेकों प्रकार के शोषण का दंश झेल रहीं हैं। प्रस्तुत पुस्तक उनकी स्थिति एवं संविधानिक उपचारों का वर्णन है।
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