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सेतु समग्र : कविता अशोक वाजपेयी (1-3 खण्डों में)

अशोक वाजपेयी

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :1483
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15771
आईएसबीएन :9788194369226,9788194369240

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खिलखिला कर एक भूरी हँसी

हँसता है कोई

पेड़ों की अँधेरी क़तारों के शिखरों पर

हँसता है कोई।

इन पंक्तियों का अँधेरा दिलों का अँधेरा है, स्थितियों का या परिवेश-वातावरण का प्राकृतिक अँधेरा है या मानव-निर्मित अँधेरा है या मनुष्य की मानसिक प्रकृतियों से उपजा है या इन सबका मिलाजुला रूप-कहना बहुत मुश्किल है। कवि के रूप में अशोक वाजपेयी की विशेषता इस अँधेरे को बताने में नहीं है। इस अँधेरे के विरुद्ध एक निजी ही सही, छोटी ही सही, पर रोशनी का स्रोत खोजने-बताने में है। इसी कारण इनकी कविताओं में इनका सजग ‘मैं’ उपस्थित रहता है। स्थितियों, परिवेशों, विवरणों में घूमता-फिरता ‘मैं’ इनकी कविता में इतनी बार उपस्थित हुआ है कि यह इनकी कविताओं की संवेदनात्मक संरचना का हिस्सा बनने लगता है। यह ‘मैं’ निराला का मैं नहीं है। शमशेर और अज्ञेय का मैं भी नहीं है; मुक्तिबोध और श्रीकांत का भी नहीं है। यह एक अलग विरोधाभास हो सकता है कि अशोक वाजपेयी के ‘मैं’ में पूर्ववर्तियों में से कई के ‘मैं’ का कोई अंश दीख सकता है। अशोक वाजपेयी की कविताओं के ‘मैं’ में पूर्ववर्तियों के संयोग, विक्षेप और हस्तक्षेप तीनों दिखाई पड़ते हैं।

- भूमिका से

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