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भारतीय भाषाओं की पहचान

डॉ. सियाराम तिवारी

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :564
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15833
आईएसबीएन :9789352296774

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भारत में कुल चार परिवारों की भाषाएँ बोली जाती हैं – भारोपीय, द्रविड़, ऑस्ट्रिक और तिब्बती-चीनी। भारत की वर्तमान संविधान-स्वीकृत बाईस भाषाओं में से पन्द्रह भाषाएँ भारोपीय परिवार की हैं – असमिया, उर्दू, ओड़िया, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोगरी, नेपाली, पंजाबी, बांगला, मराठी, मैथिली, संस्कृत, सिंधी और हिन्दी। शेष सात में से तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़, ये चार भाषाएँ द्रविड़ परिवार से सम्बन्ध रखती हैं। बोडो और मणिपुरी तिब्बती-चीनी परिवार की तथा संताली ऑस्ट्रिक परिवार की भाषा है। भारतीय भाषाओं के सबसे बड़े वर्ग को आर्य-परिवार और द्रविड़-परिवार में विभक्त करने का आधार इतिहास का यह मत है कि आर्य लोग भारत के मूल निवासी नहीं थे, वे बाहर से आये थे। कहना नहीं होगा कि यह मत अब बहुत दूर तक खण्डित हो चुका है और यह मत दिन-प्रतिदिन प्रबलतर होता जा रहा है कि आर्य लोग बाहर से नहीं आये थे। इसी के साथ भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में यह विचार सामने आने लगा है कि आर्य भाषा परिवार और द्रविड़ भाषा परिवार का पृथक्-पृथक् वर्ग मानना संगत नहीं।

दक्षिण भारत की चारों भाषाओं के मूल स्त्रोत पर विद्वानों के विचारों का पर्यालोचन भी इस सम्बन्ध में उपयोगी होगा। इस सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि अब यह विचार भी सामने आ रहा है कि किसी समय दक्षिण की चारों भाषाएँ एक थीं। और ऐसा ही महत्त्वपूर्ण एक तथ्य यह भी सामने आ रहा है कि ‘‘आर्य भाषाएँ और द्रविड़ भाषाएँ दो भिन्न भाषाएँ नहीं हैं अपितु उनका विकास एक ही भाषिक स्तर पर हुआ है।’’ यही नहीं, चारों भाषाओं के उद्गम की खोज करते हुए विद्वान् किसी-न-किसी रूप में संस्कृत तक ही पहुँचते हैं।

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