भाषा एवं साहित्य >> सिर्फ़ यही थी मेरी उम्मीद सिर्फ़ यही थी मेरी उम्मीदमंगलेश डबराल
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कविता और गद्य के अन्तर को मंगलेश ने कुछ ऐसे समझने की चेष्टा की है, “…शायद वह कोई संवेदना है, कोई मानवीय आवेग और सघनता और गहराई और विचलित करने वाली कोई वैचारिक भावना, जो किसी अभिव्यक्ति को कविता बना देती है। इसी वजह से कई बार बेहद नीरस-शुष्क गद्य भी बड़ी कविता में तब्दील हुआ है। एक कवि की उक्ति को कुछ बदल कर कहें तो भाषा के तमाम शब्द जैसे किसी बारिश में भीगते हुए खड़े रहते हैं और कुछ शब्द होते हैं जिन पर बिजली गिरती है और वे कविता बन जाते हैं। शायद बिजली से वंचित शब्द गद्य ही बने रहेंगे।” इसी रूपक को थोड़ा बढ़ायें तो कह सकते हैं कि मंगलेश का गद्य ‘शायद बिजली से वंचित’ नहीं, बल्कि बिजली गिरने के ठीक पड़ोस का गद्य है जिसमें असाधारण स्पन्दन और द्युति है।
– अशोक वाजपेयी
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