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सुधियों की चाँदनी

निर्मलेन्दु शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15865
आईएसबीएन :978-1-61301-697-8

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विलक्षण गीतकार के गीत, छंद



बेटी की ज़बानी - उसके पापा...

 


पिता के लिए कुछ लिखना और उनके सामने बैठकर व्यक्त न कर पाना मेरे लिए बहुत ज्यादा दुखदायी है। मेरे पिता निर्मलेन्दु शुक्ल अपने नाम के जैसे ही चमकते हुए चाँद की तरह शान्त, सरल और अपनी एक मुस्कुराहट से सकारात्मकता को उजागर कर देते थे। हर दिन की सुबह उनकी ही आवाज़ में गीत, शिव जी की स्तुति से हुआ करती थी और दिन भर के बाद जब पापा वापस आते तब मेरे हाथ की चाय पीते-पीते पूरे दिन की बातें हो जाया करती थीं।
कहते हैं हर बेटी पिता की लाड़ली होती है, बस कुछ यूँ ही हमारा रिश्ता था, बस फ़र्क इतना था कि पिता के साथ-साथ वह मेरे प्रिय मित्र भी थे। बचपन से लेकर जितने भी दिन वह साथ रहे, किसी की डाँट से हो या उनकी तबीयत को लेकर, बस उन्हें मेरी आँख में आँसू नहीं बर्दाश्त थे। पापा के यूँ असमय हम सबसे दूर जाने से कुछ दिन पहले की एक बात मैं आप सबसे साझा करना चाहूँगी। 23 सितम्बर, 2016 रात बारह बजे पापा का ह्वाट्स एप पर मैसेज आता है जो कुछ इस तरह था-

बिटिया तुम मायूस न होना,
अपना ग़म मुझको देना।
बचपन में तुम ओढ़ उदासी,
लगती बड़ी सयानी सी।

और इन्हीं पंक्तियों के साथ उन्होंने मुझे Happy Daugther’s Day का मैसेज़ भेजा था। उस वक़्त एक एहसास हुआ था कि मेरे साथ जीवन में कुछ भी हो, मुझे बस दिमाग़ में रखना है कि...पापा हैं न, सब सम्भाल लेंगे। आज यह लिखते हुए मेरे मन में जो विचार आ रहे हैं वह यूँ हैं कि

कदम लड़खड़ाते थे तो थाम लेती थी हाथ तुम्हारा,
ज़िन्दगी नहीं सम्भल रही आज कहाँ हो तुम....।

सोचा था कि जिस दिन पापा सेवा निवृत्त होंगे, उस दिन सबके साथ मिलकर उनकी रचनाएँ प्रकाशित करा दूँगी और कितना सुन्दर होगा उनके चेहरे पर खुशी देखना और गीतों को सुनना। उनकी मधुर आवाज़ में फिर से उनकी रचनाएँ सुनना अब मुमकिन नहीं है, पर उनके गीतों को गुनगुना कर उनको याद करना खुद में अनन्त खुशियों की प्राप्ति सा है। कहते हैं कि माँ-बाप में बच्चों की जान होती है। आज जब खुद को कुछ भी करने में सक्षम पाती हूँ तब एहसास होता है कि पापा यहीं हैं और मुझसे सब करा रहे हैं। उनका रक्षात्मक हाथ और उनके आशीर्वाद से सब करने की कोशिश जारी है।

पापा जहाँ भी होंगे आज गुनगुना रहे होंगे, खुश होंगे, हमें देख रहे होंगे, मम्मी को हिम्मत और अपने दोनों बच्चों को आशीर्वाद दे रहे होंगे। उसी आशीर्वाद के साथ और पापा के अग्रज आदरणीय मुनेन्द्र ताऊजी तथा तरुण अंकल के सहयोग से उनके लिखे कुछ गीत, ग़ज़ल और कविताएँ आप सबके लिए...।

- साक्षी शुक्ला
गर्वित पुत्री
लखनऊ
मो. 8738920509

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