यात्रा वृत्तांत >> दीवार के पार दुनिया अपार दीवार के पार दुनिया अपारराजेंद्र उपाध्याय
|
0 5 पाठक हैं |
जब बादल यात्रा करते हैं तो लगता है कहीं बारिश होगी जरूर। इसी तरह, जब लेखक यात्रा करते हैं तब भी बारिश होती है-शब्दों की, भावों की, रंग और सौंदर्य की। कविमना, कलापारखी यायावर लेखक राजेंद्र उपाध्याय के साथ भी ऐसा ही हुआ। उनका कहीं भी जाना केवल ‘घूमना’ क्रिया नहीं रहा, वह एक सुंदर, सार्थक ‘यात्रा’ में परिणत हो गया। वे शंकर की शरण में गए, पहाड़ में बारिश देखी, ज्वालामुखी की सैर की, शांतिनिकेतन में रवि के ‘साथ’ रहे, आर.के. नारायण का घर देखा, चंद दिन चायबागान में रहे, लेह पहली बार और बरसों बाद उज्जैन और बनारस गए; और इस तरह तैयार हुआ उनका यह यात्रा संस्मरण। सच, जब हम दीवार या घेरे के पार जाते हैं तभी हम दुनिया की अनंतता को देख पाते हैं, दुनिया के रेले और दुनिया के मेले देख पाते हैं। एक लेखक जब अपने घर, परिवार और शहर को छोड़ता है तो दुनिया के अनंत को देखता है और शब्द-शब्द, मोती-मोती चुनकर रच देता है एक मनोरम और मनहर यात्रावृत्त-दीवार के पार…
|