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यह पुस्तक कहानियों का एक संग्रह है-कुछ छोटी, कुछ थोड़ी बड़ी, जिनका नायक खोका है, जो मात्र तीन वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो चुका है और जिसका बचपन बांग्लादेश के मैदानी भागों से लेकर वर्तमान झारखंड के पठारी क्षेत्रों तक फैले हुए अपने कई रिश्तेदारों के यहाँ बीता है। इसके विपरीत खोका हँसी-मजाक, मस्ती और रोमांच से भरे वातावरण में पला-बढ़ा। उसका जीवन रोमांचक कारनामों और उत्साह से भरा हुआ था। उन्हीं रोमांचक कारनामों और घटनाओं से भरी हुई कहानियों को नई जगह पर नए जमाने के अनुसार एक माँ ने अपने बेटे प्रहलाद को सुनाया है।
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