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‘मेरे गाँव के पास एक नहीं दो-दो गंगा बहती हैं। एक छाड़न और दूसरी बहरी। दोनों बहावों के बीच के स्थान को बाण या दियारा कहते हैं। एक घुमक्कड़ पत्रकार जब गंगा के उद्गम से समापन स्थल तक टहलता है, तो वह इस पावन नदी को अपने नजरिये से देखता और आँकता है। लेखक का पिछले करीब 60 साल से गंगा से नजदीक का वास्ता रहा है। इस दौरान गंगा के किनारे रहने वाले लोगों के जीवन को उन्होंने नजदीक से देखा, संस्कृति को नजदीक से समझा है। गंगा को जिस-जिस रूप में देखा, गंगा के बारे में जो-जो सुना और कैसे-कैसे विभिन्न जगहों पर गंगा के किनारे पहुँचा, वह सब इस पुस्तक में है। इस पुस्तक में निजी अनुभव, संस्मरण, यात्रा वृतांत, मन में उठते सवाल और उन सवालों को आधुनिक संदर्भों में देखने की कोशिश की गई है।
गंगा एक जल धारा मात्र नहीं है, यह भारतीय लोक समाज की अस्मिता का प्रतीक है। ‘गंगा का नाम कैसे बदलता है ? इसके प्रवाह पर मौसम का क्या असर होता है ? गंगा के किनारे का ग्राम्य जीवन और साधू-सन्यासी’ – ऐसे ही कई रहस्यों और किवदंतियों को तार्किक तरीके से स्पष्ट करते इस यात्रा-वृतांत में गंगा की असीम पावनता के कारकों को समझने का अवसर मिलता है।
अनुक्रम
प्रस्तावना
- दो-दो गंगा
- वाराणसी में गंगा
- हिमालय में गंगा
- गंगोत्री और गोमुख में गंगा
- गंगा यात्रा : गोमुख से देवप्रयाग तक भागीरथी
- देवप्रयाग से प्रयागराज तक गंगा
- प्रयाग से पटना तक गंगा
- पटना से गंगासागर तक गंगा
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