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अभी सीख रहा हूँ

सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15961
आईएसबीएन :978-1-61301-719-7

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सतीश शुक्ला 'रक़ीब' का दूसरा ग़ज़ल संग्रह

अपनी बात . . .

 

यूँ तो अपनी पहली किताब "सुहबतें फ़क़ीरों की" में अपने और अपनी ज़िंदगी के बारे में लिख चुका हूँ किन्तु जिन पाठकों तक वो नहीं पहुँच सकी या जिन्हें नहीं भेज पाया, उनके लिए....

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज विकास खंड परिसर के सरकारी आवास में कानपुर के शुक्ल परिवार से स्मृतिशेष श्याम बिहारी और स्मृतिशेष सुभद्रा देवी के पुत्र स्मृतिशेष कृपाशंकर और दीक्षित परिवार से स्मृतिशेष पंडित चन्द्रिका प्रसाद और स्मृतिशेष चंद्रभागा की पुत्री स्मृतिशेष लक्ष्मीदेवी के घर में अप्रैल 04, 1961 को मेरा जन्म हुआ.

सनातन संस्कृति के धार्मिक वातावरण में मेरी परवरिश हुयी. पिताजी की सरकारी मुलाज़मत की वजह से ज़िंदगी का अहम् हिस्सा ख़ानाबदोशी में गुज़रा, जिनमें उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड के विभिन्न जिले जैसे लखनऊ, फैज़ाबाद, सुल्तानपुर, गोंडा, बस्ती, कानपुर, बहराइच, झाँसी, बाँदा, मुनसियारी, पिथौरागढ़, खटीमा, नैनीताल प्रमुख हैं.

मेरी प्रारम्भिक शिक्षा सरस्वती शिशु मन्दिर के हिन्दी और संस्कृत के माहौल में हुयी, ए बी सी डी 6वीं कक्षा से तथा अलिफ़ बे पे ते से पहचान हुई 10वीं कक्षा के बाद यानि कि 1979 में. 1980-1981 में कुछ अर्सा अलीगढ़ क़याम का इत्तिफ़ाक़ हुआ तभी से उर्दू और शायरी ज़िंदगी का एक अहम् हिस्सा बन गए, शायरी की तमाम अस्नाफ़ में से सिन्फ़े नाज़ुक "ग़ज़ल" ही रास आयी और एक अरसे से इसी में क़ाफ़िया पैमाई करता आ रहा हूँ. पिंगल शास्त्र और अरूज़ से दूर-दूर तक मेरा कोई सरोकार नहीं है, हाँ इतना ज़रूर है कि गुनगुना कर पढ़ने की आदत है सो गाहे-बगाहे मिसरे पर ठीक-ठाक मिसरा लग जाता है.

वर्ष 1977 में कुछ दिन चित्रकूट के सती अनसुइया आश्रम में रहने का संयोग हुआ जहाँ भक्ति रस में डूब कर अत्यधिक आनंद प्राप्त होने लगा था. साधू-संतों की सामान्य और सरल दिनचर्या देखकर मन में वैराग्य की भावना प्रबल होने लगी थी किन्तु यह क्रम बीच ही में टूट गया और जब तकरीबन 32 वर्षों बाद 2009 में कुछ बदले हुए रूप के साथ मुंबई के जुहू स्थित इस्कॉन मंदिर में सेवा का अवसर मिला तो वह सिलसिला फिर चल पड़ा.

मुंबई और पुणे की अदबी नशिस्तों में मुसलसल शिरकत की वजह से अदबी दायरा भी वसीअ हुआ और मिसरा तरह पर ग़ज़लें कहने के कारण मश्क़-ए-सुख़न भी ख़ूब हुआ. एक अरसे तक ये सिलसिला चलता रहा और मेरी काविशों में इज़ाफ़ा होता गया. इस सन्दर्भ में मुंबई के गोवंडी उपनगर में 'मुज़्तर' लखनवी साहिब द्वारा संचालित 'बज़्म ए सुख़न' और विले पार्ले (पश्चिम) में सादिक़ रिज़वी साहिब द्वारा संचालित 'बज़्म ए सरोश' प्रमुख हैं.

माया नगरी मुंबई में मेहनत मज़दूरी करके जीवन यापन करने वाले मुझ जैसे व्यक्ति के लिए किसी उस्ताद का गंडाबन्द शागिर्द बन कर रह पाना तो मुमकिन नहीं था लेकिन कुछ बुज़ुर्ग मित्रों की रहनुमाई मुसलसल हासिल होती रही, जिनमें सर्वप्रथम गणेश बिहारी 'तर्ज़' साहिब, 'क़मर' जलालाबादी साहिब, कृष्ण बिहारी 'नूर' साहिब, 'नक़्श' लायलपुरी साहिब, 'आरिफ़' अहमद साहिब, संगीतकार रवीन्द्र जैन साहिब, ग़ज़ल गायक एवं संगीतकार डॉ जगजीत सिंह धीमान साहिब, कुमार शैलेन्द्र जी और भाई 'मूनिस' मुरादाबादी प्रमुख हैं, जो इस दुनिया-ए-फ़ानी को अलविदा कहकर रुख़्सत हो चुके हैं, के प्रति आदर सहित मैं श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ. इनके साथ बिताया गया एक-एक पल जीवन की अमूल्य धरोहर है.

'तर्ज़' साहिब के अलावा भाई 'ओबैद' आज़म आज़मी और 'सादिक़' रिज़वी साहिब वो नाम हैं जो न सिर्फ़ ख़याल और अरूज़ के ऐतबार से मेरी काविशों पर नज़र बनाये रहे बल्कि बेशुमार लोगों से बड़ी आत्मीयता से परिचय भी कराया. आप सभी के प्रति मैं कृतज्ञ हूँ और तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

मूलतः हरदोई निवासी बाजपेई परिवार के स्मृतिशेष दामोदर और स्मृतिशेष सविता की पुत्री अनुराधा से 17.06.1994 को विवाह हुआ, प्रभु की असीम अनुकम्पा से 03.06.1997 को पुत्री सागरिका का जन्म हुआ, इन दोनों का मैं बेहद शुक्रगुज़ार हूँ कि अति विषम परिस्थितियों में भी इन्होंने धैर्य और संयम बनाए रखा जिससे मैं अदबी गतिविधियों के लिए वक़्त निकाल सका.

मैं हृदयतल से आभार व्यक्त करना चाहूँगा संगीत निर्देशक और गायक आदरणीय कीर्ति अनुराग जी और उनके सहयोगी श्री रामशंकर जज्वारे का जिन्होंने "सुहबतें फ़क़ीरों की" में प्रकाशित सरस्वती वन्दना को संगीत और अपनी मधुर आवाज़ से सजाकर एक बहुत ख़ूबसूरत वीडिओ एलबम बनाया है.

तक़रीबन 8-10 बरस पहले रायबरेली के उस्ताद शाइर मोहतरम नाज़ प्रतापगढ़ी साहिब ने मेरे ताअरुफ़ में यह क़ताअ लिखकर मुझे भेजा था.

हर अहले ग़म के क़रीब हूँ मैं
सतीश शुक्ला 'रक़ीब' हूँ मैं
दिलों पे करता हूँ मैं हुकूमत
तो कैसे कह दूँ ग़रीब हूँ मैं


भाई नीरज जी गोस्वामी ने अपने ब्लॉग में मेरे और मेरी पहली किताब, "सुहबतें फ़क़ीरों की" के बारे में बहुत ही मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है जिसे मैं ज्यों का त्यों किताब में शामिल कर रहा हूँ. जिन्होंने पहली किताब "सुहबतें फ़क़ीरों की" नहीं पढ़ी या जिन्हें मैं नहीं भेज पाया वो इसे पढ़कर कम समय में ही पूरे मजमुआ-ए-कलाम का लुत्फ़ उठा सकते हैं, जिसके लिए मैं भाई नीरज जी गोस्वामी का हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ.

बचपन, किशोरावस्था और उम्र के इस पड़ाव तक जिनके साथ मित्रवत सम्बन्ध रहे, सभी के नाम का ज़िक्र कर पाना तो मुमकिन नहीं, किन्तु कुछ बेहद अज़ीज़ रहे सम्बन्धियों और मित्रों में आर. एस. अवस्थी (जीजा जी) डॉ. आर. एन. शुक्ला भाई साहिब, शिवकुमार भैया, मुकेश दीक्षित (राजन भाई), मीना बाजपेई, रेनू बाजपेई दीपक, रेनू, संजय, राहुल, पूर्णिमा (बबली), नीरज (राजन), डॉ. राजीव कृषक, नीलाभ खरे, राजीव खरे, बी.एस.बोरा, नवीन सुयाल, आशुतोष उपाध्याय, के. सी. पांडेय, कमला राजेंद्र उपाध्याय, उषा राजेश शर्मा, गोपाल पांडेय, आर. ए. पांडेय, के. एन. पांडेय, अशोक पांडेय, डॉ. शैलेश वफ़ा, अवनीश दीक्षित, नीता एवं संगीता बाजपेई, शोभा स्वप्निल, हेमा चन्दानी, अलका शरर, श्याम अचल प्रियात्मीय, संतोष सिंह, विद्याभूषण तिवारी, ज़ाकिर रहबर, केतन कमाल, निर्मल नदीम आदि सभी के प्रति मैं अपने एक शे'र के माध्यम से कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ.

किये हैं आपने उपकार अनगिनत मुझ पर
न भूल पाऊँगा जिनको मैं आमरण मित्रो

भाई राजेन्द्र तिवारी जी और भाई गोपाल शुक्ला जी (जो प्रकाशक होने के साथ-साथ पुस्तक.आर्ग नाम से वेबसाइट भी चलाते हैं) का इस दूसरे काव्य संकलन "अभी सीख रहा हूँ" के प्रकाशन में समर्पित सहयोग के लिए आप दोनों का आभार व्यक्त करता हूँ.

अंततः सभी मित्रों जिन्होंने अपना क़ीमती वक़्त मेरे, मेरी शायरी और किताब के बारे में लिखने के लिए निकाला, के प्रति कृतज्ञ हूँ और आभार व्यक्त करता हूँ.

मेरी एक और कोशिश "अभी सीख रहा हूँ" आप अहले नज़र की अदालत में पेश है. फ़ैसले का मुंतज़िर रहूँगा.

- सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

बसंत पंचमी     
फरवरी 05, 2022

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    अनुक्रम

  1. उर्दू ग़ज़लों के शैदाई और दिलदादा सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
  2. अपनी बात . . .
  3. अनुक्रम

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