लोगों की राय

भाषा एवं साहित्य >> अनाथ

अनाथ

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : किताब महल प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 15970
आईएसबीएन :9788122504057

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

अनुवादक की ओर से

“अनाथ” ऐनी का एक छोटा उपन्यास है जिसे उन्होंने बालकों के लिए मुख्यतः ताजिक और उज्वेक बालक-बालिकाओं के लिए लिखा है जिनके प्रजातंत्र अफगानिस्तान की सीमा पर पड़ते हैं। 1917 की क्रान्ति से 13-14 वर्ष बाद तक यह सीमान्त बहुत अशान्त रहा। जब अमीर बुखारा का तख्त डगमगाने लगा और सदियों के शोषित-उत्पीड़ित अपने निष्ठुर शोषकों के विरुद्ध उठ खड़े हुए, तो “धर्म डूबा” का नाम लेकर देश में आग लगाई गयी, बच्चों-बूढ़ों की निर्मम हत्यायें की गयीं, गाँव के गाँव जला दिये गये, धर्मयोद्धा और गाजी बनकर अत्याचारियों ने धर्म के नाम पर जनता पर हर तरह का जुल्म किया। इन अत्याचारों का विस्तृत वर्णन ऐनी ने अपने बढ़े उपन्यासों “दाखुन्दा” और “जौ दास थे” (गुलामाँ) में किया है। यहाँ भी उन अत्याचारों का संक्षिप्त वर्णन आया है ऐनी की पुस्तक मुख्यतया सीमान्त के तरुण-तरुणियों को यह हृदयस्थ कराने के लिए लिखी गयी है कि मातृमूमि की सीमा-रक्षा के लिए उन्हें कितना सजग रहने की आवश्यकता है। लेखक को कभी ख्याल भी नहीं आया होगा कि उसकी यह पुस्तिका स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनूदित होगी।

हमारे पाठकों का इस पुस्तिका द्वारा कितना मनोरंजन होगा, इसे तो पाठक ही बतलायेंगे, लेकिन उनकी आँख इससे जरूर खुलेगी और वह समझेंगे कि शोषक-वर्ग धर्मान्धता का कहाँ तक आश्रय ले सकता है।

अमीर और उसके पिट्ठुओं को देश छोड़कर अफगानिस्तान भागना पड़ा। अफगानिस्तान का एक तटस्थ देश के तौर पर कर्तव्य था कि वह अपनी भूमि को मध्य-एशिया की नयी शक्ति के विरुद्ध युद्ध की तैयारी का अखाड़ा न बनने देता, लेकिन यह नहीं हुआ। सोवियत मध्य-एशिया के भगोड़े हथियार जमा करते थे, आदमी तैयार करते थे और फिर उन्हें सीमान्त की नदी आमू (वक्षु) पार करा सोवियत देश में लूटमार करने के लिये भेजे जाते थे। सोवियत को अधिकार था कि यदि तटस्थ पड़ोसी तटस्थता का धर्म छोड़ दे और दुश्मनों को न सिर्फ शरण दे, बल्कि युद्ध की तैयारी की सारी सुविधा दे, तो वह उसके भीतर तक अपने दुश्मनों का पीछा करे। यद्यपि अफगानिस्तान लारियाँ, पेट्रोल, तोपें नहीं दे रहा था, तो भी अफगानिस्तान के अमीर की भगोड़े गाजियों के प्रति सहानुभूति थी, तभी वह 1931 तक उपद्रव में कुछ-न-कुछ सहायता देने में समर्थ रहा, लेकिन धीरे-धीरे सारे सीमान्त को इतना मजबूत कर दिया गया कि गाजियों के लिए कूदकर वहाँ पहुँचने के लिए एक अंगुल भी जमीन न रह गयी। सीमान्तो तक कलखोज (पंचायती खेतीवाले गाँव) भर गये। गाँव का हर एक परिवार एक सम्मिलित परिवार-सा हो गया। सभी तरुण-तरुणियाँ जहाँ एक ओर शिक्षित हो गये, वहाँ हथियार चलाने में भी सिद्धहस्त बन गये।

‘अनाथ’ में सीमान्त-पार से होनेवाले जिन उपद्रवों का वर्णन आया है, उसका आरम्भ हमारी सीमा पर भी कश्मीर में हो गया है। पाकिस्तान कहीं अधिक इस काम में भाग ले रहा है और हर जगह धर्म के नाम पर उत्तेजित करके लोगों को उसी तरह ‘मुजाहिद’ (धर्मयोद्धा) बनाकर भेज रहा है जिस तरह अमरीकी मदद के लिए अफगान (पठान) मुजाहिद बुखारा तक पहुँचे थे। उन्हीं की सहायता से अमीर भागकर सुरक्षित अफगानिस्तान में पहुँच सका। वही अफगान मुजाहिद कश्मीर में भी इस्लाम की रक्षा करने के लिए पहुँचे हैं। हमें यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि एक बार कश्मीर से इन मुजाहिदों को निकाल देने पर शान्ति स्थापित हो जायेगी। पहाड़ों में कितने ही सालों तक छुट-पुट लूटमार जारी रहेगी जिसका अन्त हम कश्मीर की जनता को शिक्षित और सुखी बना करके ही कर सकते हैं।

ऐनी के बारे में पाठक जानना चाहेंगे। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि ऐनी सोवियत मध्य-एशिया के प्रेमचन्द हैं। विशेष जिज्ञासा रखने वालों के लिए वहाँ उनके बारे में हम कुछ और देते हैं। मेरे कहने पर उन्होंने अत्यन्त संक्षेप में अपनी जीवन-घटनाएँ लिख भेजी थीं जिन्हें मैं यहाँ उद्घृत करता हूँ –

‘‘मैं 1878 में बुखारा जिले के गिजदुवान तहसील के साकतारी गाँव में एक गरीब किसान के घर पैदा हआ। बारह साल की आयु में अनाथ हों गया। बड़ा भाई (हाजी सिराजुद्दीन खोजा) बुखारा में पढ़ रह था। उसने मुझे अपने साथ कर लिया। मैं वहाँ पेट के लिए काम करता और पढ़ता रहा।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book