कविता संग्रह >> माँ बस माँ होती है माँ बस माँ होती हैअशोक कुमार बाजपेयी
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कवितायें
माँ कर्ता भर्ता माँ ही..
कोई स्त्री अपने भीतर एक जीव को अपनी देह और धड़कन का अभिन्न हिस्सा बनाकर अवर्णनीय पीड़ाओं, सोच, सहनशीलता, धैर्य, वत्सला आकांक्षाओं और प्रकृतिजन्य परीक्षणों से गुजरकर उसे संसार में अर्पित करती है तब कहीं उसे माँ का संबोधन प्राप्त होता है। माँ की यही तपस्या उसे सर्वाधिक, सर्वमान्य सम्मानित पूज्यनीय बनाती है। प्रकृति में सबसे निकट का रिस्ता माँ का होता है जो पवित्र, निस्पृह व अक्षुण्ण प्रेम से परिपूर्ण सर्वथा स्थाई होता है। इसीलिए कहा गया कि ईश्वर सभी घरों में नहीं रह सकता इसीलिए उसले माँ बनाई। हिंदी सहित दुनिया की सभी भाषाओं में माँ को केंद्र में रखकर विपुल साहित्य की रचना की गई है, आगे भी की जाती रहेगी।
कवि श्री अशोक कुमार वाजपेयी की काव्यकृति की सभी कविताएं माँ पर केंद्रित हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान की व्यापकता चिन्हित करने के लिए 'हरि अनन्त, हरि कथा अनन्ता कहा था जो माँ के महात्म्य पर भी सटीक बैठता है। अशोक कुमार बाजपेयी ने माँ से जुड़े तमाम अनुभवों और अनुभूतियों को संवेदना के अतल से शिखर तक की यात्रा करते हुए काव्य रचनाएं की है। रचनाओं की बुनावट और व्यापकता ऐसी है कि प्रत्येक काव्यप्रेमी पाठक को उनमे अपनी माँ की छवियाँ दिखेंगी। ये छवियों उसे माँ की ऊष्मा महसूस कराने में सक्षम हैं।
माँ स्वयं में एक कभी खत्म न होने वाला महाकाव्य होती है। कृति में कवि की कोशिश भी अक्षर से अनन्त तक की यात्रा करने की है। अंत में...
माँ कर्ता भर्ता माँ ही, माँ से बड़ा न कोय।
माँ का सिर पर हाथ हो सदा सुमंगल होय।।
- डॉ. सुरेश अवस्थी
(अंतर्राष्ट्रीय कवि, राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त शिक्षाविद व वरिष्ठ पत्रकार)
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