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कविता संग्रह >> हरापन बाकी है

हरापन बाकी है

देवेन्द्र सफल

प्रकाशक : दीक्षा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16019
आईएसबीएन :000000000

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श्री सफल चाहे 'आपबीती' कहें या 'जगबीती' लिखें, लोक-संपृक्ति उनकी विशिष्ट पहचान बनी रहती है

पारम्परिक गीत का छन्द, नवगीत की भंगिमा, जनगीत का कथ्य तथा लोकगीत का शब्द वैशिष्ट्य है, देवेन्द्र सफल के गीतों में । देशज शब्दों के सार्थक प्रयोग और लोक-संस्कृति के सम्यक समन्वय ने 'सफल' के प्रयोगधर्मी गीतों को जो रुप दिया है, उस में व्यक्तिनिष्ठ अनुभूतियों की मार्मिक अभिव्यक्ति ने जन-जीवन में व्याप्त विद्रूपताओं तथा अभावों को एकदम नये तेवर से सम्पन्न किया है। रमेश रंजक (स्मृतिशेष) और शांति सुमन - जैसी ठसक तथा धमक है 'सफल' के जनोन्मुखी गीतों में । 'सफल' के नये संग्रह की रचनाओं में वे व्यवस्था-विरोधी एवं जनपक्षधर कवि के तौर पर उभरे हैं। ऐसा लगता है कि इस संवेदनशील कवि के राग-रंजित अन्तर्मन को सामाजिक वैषम्य सदैव आंदोलित करता रहा है।

- कीर्तिशेष प्रो. रामस्वरुप सिन्दूर

 
इन गीतों की बुनावट में कहीं बनावट का आभास नहीं होता, भाषा का प्रवाह इतना सहज-सरल है कि पाठक के मन में सीधा समा जाता है । इन रचनाओं की अन्तरवस्तु का फलक बहुत व्यापक है । परन्तु मुख्य विशेषता यह है कि उनके नवगीतों का अंगी भाव जन-चेतना से सम्पृक्त है । वस्तुत: एक जागरुक कवि का यह परम धर्म भी है। मैं कवि के उत्तरोत्तर उन्नयन के प्रति आश्वस्त हूँ। मुझे विश्वास है। वे अपने इस पवित्र रचना-कर्म के द्वारा नये कीर्तिमान स्थापित करेंगे।

-प्रो. विद्यानन्दन राजीव


आप निरन्तर सक्रिय रहकर गीत-विधा को नये भावों और नये शब्द-बिम्बों से समृद्ध कर रहे हैं। आपका यह उत्साह और समर्पण प्रशंसनीय है। आपको बधाई और साधुवाद।

- डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र


आपकी गीत-यात्रा निरन्तर गतिशील ही नहीं, उपलब्धि के नये शिखर भी छू रही है। मेरे लिए विशेष प्रसन्नता की बात यह है कि आपके संकलन में जन-सम्पृक्ति बढ़ी है।

- डॉ. राजेन्द्र गौतम

 
श्री सफल चाहे 'आपबीती' कहें या 'जगबीती' लिखें, लोक-संपृक्ति उनकी विशिष्ट पहचान बनी रहती है । लोकजीवन से वे गहरे जुड़े हुए हैं और उस सोनामाटी ने जो लेख लिखे हैं उन्हें बाँचने में उनसे कभी चूक नहीं होती । वे कंकरीट के जंगल में भी बैठे हुए सुवास लिख रहे हैं। यह सुवास लोक-संवेदना की सुवास है। इसके आहत या विक्षत होने से वे विक्षुब्ध होते हैं।

- डा. वेद प्रकाश अमिताभ

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