कविता संग्रह >> पखेरू गंध के पखेरू गंध केदेवेन्द्र सफल
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गीत संग्रह
सुप्रसिद्ध हिन्दी कवि प्रो० राम स्वरूप 'सिन्दूर' ने गीतकार वीरेन्द्र ‘आस्तिक' के बाद स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी गीत-काव्य के बहुरंगे पट पर एक और हस्ताक्षर टॉक दिया है । देवेन्द्र 'सफल' के अधिकांश गीत अन्तर्मन के उद्वेलन से स्वतः स्फूर्जित है। इनमें कृत्रिमता नहीं है।
श्वासों का संस्पर्श पाकर, हरे बॉस की वंशी जिस प्रकार पिहक उठती है, कवि की राग-चेतना से 'सफल' के ये गीत फूट निकले होंगे। देवेन्द्र 'सफल' के गीतों की बनावट और बुनावट नितान्त सहज है।
'सफल' का राग-बोध अप्रत्यक्ष न होकर प्रत्यक्ष है। इस कवि की अपनी जीवन स्थितियाँ इसके गीतों में सहजता के साथ मुखरित हुई है। 'सफल' की भाषा साफ-सुथरी है और अभिव्यक्तियाँ सपाट न होकर काव्यात्मक हैं।
रेखांकित करने योग्य एक विशेष बात यह है कि देवेन्द्र के गीतों में निर्गुणियाँ सन्त-भक्तों-जैसी एकान्त समर्पण भावना' और घनीभूत रागात्मकता के बीज विद्यमान हैं। इस कवि की एक और पहचान है। इसकी लयकारी में लोक-गीतों जैसी अनुगूंज के साथ पाठक को हटात अपने में समो लेने की क्षमता है।
- डॉ० रवीन्द्र भ्रमर
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