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कविता संग्रह >> चावल नये नये

चावल नये नये

सुषमा सिंह

प्रकाशक : हिन्दुस्तानी एकेडमी प्रकाशित वर्ष : 2002
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16030
आईएसबीएन :000000000

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भावपरक कवितायें

प्रकाशकीय


हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने हिन्दी के समर्थ कवियों की सर्जनात्मकता का सम्मान करते हुए कुछ विशिष्ट कवियों के काव्य-संकलनों के प्रकाशनों की परंपरा संचालित करने का उपक्रम किया है। इस दृष्टि से 'गेरू की लिपियाँ (श्री अमरनाथ श्रीवास्तव), 'है तो है' (श्री एहतराम इस्लाम), 'समय आने दो' (श्री शिवकुटी लाल वर्मा) और 'दीप देहरी द्वार' (श्री लक्ष्मीकान्त वर्मा) का प्रकाशन विगत वर्षों में हुआ है। ये काव्य - संग्रह चर्चित एवं प्रशंसित भी हैं। श्री अमरनाथ श्रीवास्तव के काव्य - संग्रह 'गेरू की लिपियाँ पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का निराला साहित्य सम्मान भी प्राप्त हो चुका है।

सुषमा सिंह प्रख्यात कवयित्री हैं और हिन्दुस्तानी एकेडेमी ने महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर उन्हें सम्मानित भी किया था।

यह सौभाग्य का विषय है कि एकेडेमी सुषमा सिंह के काव्य संग्रह 'चावल नये-नये' का प्रकाशन कर रही है।

सुषमा जी के गीत, गज़ल तथा कविताओं में गीति – काव्य की तरलता और लालित्य का लोकरंजक रूप सदा उच्छ्वासित होता रहता है। अपने पिता ठाकुर गोपालशरण सिंह की काव्य प्रतिभा का रिक्थ लेकर वे चली हैं और उन्हें पर्याप्त सुयश भी प्राप्त हुआ है। मंचीय काव्य पाठ की दृष्टि से सुषमा जी सर्वत्र सराही जाती हैं। आधुनिक भावबोध को गीत व गज़ल में उतार कर वे काव्य रसिकों के बीच अपना विशेष स्थान बनाए हुए

मुझे विश्वास है कि उनकी रचनाओं का यह स्तबक काव्य -प्रेमियों के बीच एक विशेष प्रकार की प्रतिष्ठा पाएगा।

हिन्दी दिवस,  १४ सितम्बर २००२

 -अनिल कुमार सिंह

सचिव

हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद


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    अनुक्रम

  1. अपनी बात
  2. काव्य-क्रम

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