कविता संग्रह >> पतझर में कोंपल पतझर में कोंपलडॉ. मंजु लता श्रीवास्तव
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कवितायें
'पतझर में कोंपल' डॉ. मंजु लता श्रीवास्तव का दूसरा गीत संग्रह है जिसमें मंजु के भीतर का नारी मन अपनी पूरी भावुकता और मनोविज्ञान के साथ गीतों में उजागर हुआ है लेकिन इस भावुकता में स्थान-स्थान पर ऐसे चित्र भी हैं जो अनेक अर्थ बोध पाठक के मन में अंकुरित करते रहते हैं। शहर, गाँव, राजनीति, सामाजिक सद्भाव और वैमनस्यता दोनो ही इनके गीतों में अपनी तीक्ष्णता के साथ आए हैं।
गीतों के शीर्षक ही विषय की विविधता को परिभाषित कर रहे हैं। समाज में माफिया तंत्र, संगीन बंदूकों की जैसे अधिकता हो गई है उसे अपने गीत ‘अब खेतों में ज्वार बाजरा नहीं उगाये जाते हैं/संगीनों बंदूकों की वह चमकदार खनकें फसलें / धारदार हथियारों की अब पौध लगाती हैं/नस्लें' मंजु ने बड़े सरल और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है। 'आया पूस' गीत में बिल्कुल अभिनव प्रयोग है जब वह लिखती हैं 'कोठी भीतर मालपुए की महक झोपड़ी वाला पाता/ जले अलाव अमीरों के घर. ठिठरन से निर्धन का नाता' गीतों के बीच से होते हुए मुझे मंजु की ऐसी अनुभूतियों का जो उनका भोगा हुआ यथार्थ लगता है जो भी उन्होने अपने आस-पास से उठाये हैं यह साफ-साफ दिखाई पड़ते हैं और यही वह नवगीत है 'माटी धूल धूसरित बचपन मुझको सपने सा दिखता, एक तार पर चढ़ता बंदर/ है अब यादों में बसता' मंजु ऐसी नवगीत कवयित्री हैं जिनके गीत मुझे बहुत भाते हैं। मुझे विश्वास है कि यह संग्रह एक नई पहचान के साथ हिंदी जगत में प्रकाशित हो रहा है और उनका सर्वत्र स्वागत होगा।
अवध बिहारी श्रीवास्तव
वरिष्ठ गीतकार
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