कविता संग्रह >> साज़-ए-वतन साज़-ए-वतनहाफ़िज़ कर्नाटकी
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वतनी नजमें
हाफिज़ कर्नाटकी का कलम ज़रखेज़ और सदा बहार है। वह अदब की जिस सिन्फ की तरफ नज़र करते हैं। उसको मरकज़ी अहमियत हासिल हो जाती है। वतन से मोहब्बत की जो मिसाल उन्होंने अपनी शायरी में पेश की है उसकी झलक उनकी अमली जिंदगी में भी नज़र आती है यही वजह है के उनकी शायरी और जिंदगी पुरी तरह हम आहंग नज़र आती है।
प्रोः मनाज़िर आशिक हरगानवी हाफिज़ कर्नाटकी हरफन मौला शायर और अदीब हैं। उनके काम करने की रफ्तार काबिले रशक है। “हिन्दुस्तान' के नाम से वह पहले ही हुब्बुल वतनी की हामिल नज़्मों का एक मजमुआ पेश कर चुके हैं। उनका ताज़ा मजमुआ साज़-ए-वतन देखा तो हैरान रह गया एक ही मौजू पर इतनी सारी उमदा नज़्में कहना आसान काम नहीं है। इसके लिए सचमुच दिल में बतन की मोहब्बत का समुंद्र ठाठे मारना चाहिए। हाफिज़ कर्नाटकी ने यह किताब पेश करके साबित कर दिया है कि उनके सीने में वतन से मोहब्बत का चशमा उबल रहा है। वतन से मोहब्बत की ऐसी मिसालें आजकल बहुत कम देखने को मिलती हैं। यह किताब वतनी नज़्मों का कीमती खज़ाना है मुझे यकीन है कि यह खज़ाना पाकर हर इन्सान अपने आप पर और उर्दू शायरी पर फखर महसूस करेगा।
- असगर महमूद
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