कविता संग्रह >> चलों हवाओं का रुख़ मोड़ें चलों हवाओं का रुख़ मोड़ेंकैलाश सत्यार्थी
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दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित 'नोबेल शान्ति पुरस्कार' से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी पहले ऐसे भारतीय हैं, जिनकी जन्मभूमि भारत है। और कर्मभूमि भी। उन्होंने अपना नोबेल पुरस्कार राष्ट्र को समर्पित कर दिया है, जो अब राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में आम लोगों दर्शन के लिए रखा है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री लेने के बाद श्री सत्यार्थी ने जीविकोपार्जन के लिए अध्यापन कार्य चुना और एक कॉलेज में पढ़ाने लगे। लेकिन उनके मन में ग़रीब व बेसहारा बच्चों की दशा देखकर उनके लिए कुछ करने की अकुलाहट थी। इसी ने एक दिन उन्हें नौकरी छोड़कर बच्चों के लिए कुछ कर गुज़रने को विवश कर दिया। जब देश-दुनिया में बाल मज़दूरी कोई मुद्दा नहीं हुआ करता था, तब श्री सत्यार्थी ने सन् 1981 में 'बचपन बचाओ आन्दोलन' की शुरुआत की। यह वह दौर था, जब समाज यह स्वीकारने तक को तैयार न था कि बच्चों के भी कुछ अधिकार होते हैं और बालश्रम समाज पर एक अभिशाप है। नोबेल शान्ति पुरस्कार मिलने के बाद भी श्री सत्यार्थी चुप नहीं बैठे हैं और अपने जीते जी दुनिया से बाल दासता ख़त्म करने का प्रण लिया है। इसके लिए उन्होंने 100 मिलियन फॉर 100 मिलियन नामक विश्वव्यापी आन्दोलन शुरू किया है।
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