सिनेमा एवं मनोरंजन >> बॉलीवुड की बुनियाद बॉलीवुड की बुनियादअजित राय
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जिसे हम हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण युग कहते हैं, वह दुनिया भर में हिन्दी फ़िल्मों की वैश्विक सांस्कृतिक यात्रा का भी स्वर्ण युग था। आज हिन्दी फ़िल्में सारी दुनिया में अच्छा बिज़नेस कर रही हैं, लेकिन इसकी बुनियाद 1955 में हिन्दुजा बन्धुओं ने ईरान में रखी थी। ईरान से शुरू हुआ यह सफ़र देखते-देखते सारी दुनिया में लोकप्रिय हो गया शायद ही आज किसी को यक़ीन हो कि अब से क़रीब पचास साल पहले राज कपूर की फ़िल्म ‘संगम’ जब फ़ारसी में डब होकर ईरान में प्रदर्शित हुई तो तीन साल तक और मिस्र की राजधानी काहिरा में एक साल तक चली। महबूब ख़ान की ‘मदर इंडिया’ और रमेश सिप्पी की ‘शोले’ भी ईरान में एक साल तक चली। भारतीय उद्योगपति हिन्दुजा बन्धुओं ने 1954-55 से 1984-85 तक क़रीब बारह सौ हिन्दी फ़िल्मों को दुनिया भर में प्रदर्शित किया और इस तरह बना ‘बॉलीवुड’।
बॉलीवुड की बुनियाद एक तरह से हिन्दी सिनेमा के उस स्वर्णिम इतिहास को दोबारा ज़िन्दा करने की कोशिश है जिसे आज लगभग भुला दिया गया है। यह किताब हमें क़रीब बारह सौ हिन्दी फ़िल्मों की ऐतिहासिक वैश्विक सांस्कृतिक यात्रा पर ले जाती है जो हिन्दुजा बन्धुओं के प्रयासों से सफल हुई थी । यह देखकर सुखद आश्चर्य होता है कि राज कपूर की फ़िल्म ‘श्री 420’ (1954-55) से लेकर अमिताभ बच्चन की ‘नसीब’ (1984-85) तक बारह सौ फ़िल्मों की यह यात्रा ईरान से शुरू होकर ब्रिटेन, मिस्र, तुर्की, लेबनान, जार्डन, सीरिया, इजरायल, थाईलैंड, ग्रीस होते हुए सारी दुनिया तक पहुँची। इस यात्रा की अनेक अनसुनी कहानियाँ पाठकों और फ़िल्म प्रेमियों को पसन्द आयेंगी।
– रेहान फ़ज़ल बीबीसी, दिल्ली
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