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जीवनी/आत्मकथा >> पं दीनदयाल उपाध्याय : व्यक्ति एवं विचार

पं दीनदयाल उपाध्याय : व्यक्ति एवं विचार

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

अशोक पाण्डेय

आशीष पाण्डेय

प्रकाशक : आराधना ब्रदर्स प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16174
आईएसबीएन :9788189076276

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पं दीनदयाल उपाध्याय : व्यक्ति एवं विचार

श्री उपाध्याय देश के राजनीतिक जीवन में एक प्रमुख भूमिका अदा कर रहे थे। जनसंघ और कांग्रेस के बीच मतभेद चाहे जो हो, श्री उपाध्याय सर्वाधिक सम्मान पात्र नेता थे और उन्होंने अपना जीवन देश की एकता एवं संस्कृति को समर्पित कर दिया था।

- इन्दिरा गाँधी

* * *

नवयुग के चाणक्य, तुम्हारा इच्छित भारत
अभिनव चन्द्रगुप्त की आँखों का सपना है!
जिन आदर्शों के हित थे तुम देव! समर्पित
लक्षाधिक प्राणों को, उनके-हित तपना है!

फिर रक्त-रंजिता हुई दिशा
दिन में ही छायी निविड़ निशा
कैसा यह वज्र-निपात हुआ?
वह चला छोड़कर कौन साथ?
हम लगते हैं जैसे अनाथ,
कैसा आकस्मिक घात हुआ?

- 'राष्ट्रकवि' सोहनलाल द्विवेदी

* * *

अज्ञान को मिटाने के लिए ज्ञान की मशाल उठाओ और गरीबी खत्म करने के लिए आर्थिक विकास की रोशनी फैलाओ। हमारे प्राचीन ऋषियों और संतों का यही निरन्तर उपदेश है। दीनदयाल जी जीवन भर हमारे प्राचीन ऋषियों के आदेश पर चलते रहे। इसके लिए उन्होंने सामाजिक सेवा के क्षेत्र को चुना और अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। ऐसे व्यक्ति महामानव होते हैं। वे प्राचीन ऋषियों-मुनियों की कोटि में थे। वे जनता के सेवक थे।

- चन्द्रशेखर

* * *

प्रकृति का यह नियम है कि जो कोई पुराना रह जायेगा, वह जीवित नहीं रह सकता। हिन्दू संस्कृति की विशेषता यह रही है कि उसमें शाश्वत आधुनिकता है। जो आधुनिकता का संदेश देता है और जो संदेश शाश्वत से निकलता है, वह युग-युग तक रहता है। इस मापदण्ड से हम देखें, तो पं. दीनदयाल उपाध्याय युग-पुरुष थे।

- बाबू जगजीवन राम

 

 

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    अनुक्रम

  1. अनुक्रमणिका

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