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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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कड़े सेंसर के बावजूद, पंजाब में हुई जुल्मों की खबरें सारे देश में फैल गईं, जब हर जगह क्षोभ-क्रोध का वातावरण छा गया और विरोध में आवाजें बुलन्द की जाने लगीं। हालांकि इन नृशंस घटनाओं का सत्याग्रह आन्दोलन से कोई ताल्लुक नहीं था, फिर भी दूसरी जगहों में लोगों ने जो हिंसात्मक कार्रवाइयां कीं, उनके कारण गांधीजी ने 18 अप्रैल को आन्दोलन स्थगित कर दिया। 30 मई को रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपनी 'नाइटहुड' की सरकारी खिताब का परित्याग कर दिया, जिसका उद्देश्य ''दमनचक्र में पिसे अपने लाखों देशवासियों की हृदयद्रावक मूक वेदना को व्यक्त करना था।'' जलियांवाला बाग हत्या-काण्ड को लेकर इसी तरह के और भी कई विरोध सरकार के सामने प्रकट किए गए। पहले तो सरकार इस नरसंहार पर पर्दा डाल देना चाहती थी, किन्तु जब ऐसे विरोध सामने आए, तो उसे बाध्य होकर जांच के लिए हंटर कमेटी बैठानी पड़ी। किन्तु इस कमेटी को मनमाने ढंग से सरकार ने नियुक्त किया था, इसलिए इससे परिस्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ, वह ज्यों की त्यों बनी रही। अत्याचारों के लिए जिम्मेदार अपने अफसरों की रक्षा करने के इरादे से सरकार ने जल्दी से जो इनडेम्निटी ऐक्ट (क्षतिपूर्ति अधिनियम ) बनाया, उससे साबित हो गया कि अपने काले कारनामों की लीपापोती करने के लिए ही सरकार ने हंटर कमेटी नियुक्त की है।

27 नवम्बर, 1919 को जब तिलक जहाज से बम्बई पहुंचे, तो उस समय सारा देश क्रोध और क्षोभ से उबल रहा था। तिलक ने इस परिवर्तन को भांप लिया, जो उनकी अनुपस्थिति में सारे देश में आया था, यों अपनी अनुपस्थिति के बावजूद, वह भारत की दिन-प्रति-दिन की घटनाओं से भलीभांति परिचित थे। लंदन में इंग्लैण्ड गए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल और कांग्रेस की ब्रिटिश कमेटी ने जो घोषणापत्र जारी किया था, उससे इस बात का पता चलता है कि तिलक ने बम्बई पहुंचने पर कहा था-''जब गांधी जी ने सत्याग्रह शुरू किया था, उस समय काश! मैं बम्बई में होता और उनके साथ मिलकर कठिनाइयों और परेशानियों का सामना कर सकता!''

बम्बई, पूना और अन्य स्थानों में तिलक का जो शानदार स्वागत हुआ, उससे स्पष्ट हो गया कि चिरोल के विरुद्ध मुकदमा हारने से उनकी लोकप्रियता पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। इस सम्बन्ध में 'बाम्बे क्रॉनिकल' ने लिखा-''इस बात की किसको परवा है कि हमारे प्रिय नेता लोकमान्य के बारे में अंग्रेज सूरी और जज क क्या राय है। उनके निर्णय में वह शक्ति नहीं, जो जनता के हृदय सिंहासन से उन्हें अपदस्थ कर सके।'' स्वदेश वापस लौटने पर तिल के सामने सबसे बड़ा काम था कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में शा. होना, जहां मॉण्टफोर्ड सुधारों के बारे में कांग्रेस की नीति निर्धारित की जानेवाली थी। अतः अमृतसर के लिए रवाना होने के पहले वह मद्रास गए, जहां अपने स्वागत सम्मान में उन्हें अनेक मानपत्र मिले, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण मद्रास प्रेसिडेन्सी एसोसियेशन द्वारा दिया गया मानपत्र इसलिए था कि यह एसोसियेशन एक गैर-ब्राह्मण संगठन था जो दो वर्ष पहले होम रूल लीग के मुकाबले सरकारी छत्रछाया में गठित किया गया था। यह भी अत्यन्त महत्वपूर्ण बात थी कि इस एसोसियेशन जैसी संस्था ने उन्हें सबसे बड़ा राष्ट्रीय नेता कहकर उनका हार्दिक अभिनन्दन किया और ''बढ़ती हुई साम्प्रदायिक प्रतिद्वन्द्विता और राजनीतिक गुटबाजी जैसी अनेक तरह की अलगाव वाली प्रवृत्तियों की ओर उनका ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि ये चीजें हमारे देश की स्वतंत्रता में बाधक हैं।''

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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