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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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''कांग्रेस डेमोक्रैटिक पार्टी का विचार है कि मान्टेग्यू रिफार्म्स ऐक्ट (सुधार अधिनियम) को, चाहे वह अच्छा हैं या बुरा, पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना के उद्देश्य से अमली जामा पहनाया जाए और इस प्रयोजन से यह पार्टी बगैर किसी झिझक के सहयोग या वैधानिक ढंग से विरोध-इन दोनों में से जिसे भी जनता की इच्छा पूरी करने का व्यावहारिक और उपयुक्त तरीका समझेगी, करेगी।''

तिलक स्वयं चुनाव में खड़ा होना नहीं चाहते थे। इंगलैण्ड से लौटने के बाद वह लगातार व्यस्त रहे और उन्हें बहुत अधिक परिश्रम करना पड़ा। अतः उन्होंने कहा-''मुझे ऐसा लगता है कि वास्तव में मेरी शारीरिक शक्ति बड़ी जल्दी ही क्षीण होती जा रही है। मुझे यह विश्वास नहीं कि मैं अब कोई ऐसा नया काम हाथ में ले सकता हूं, जिससे इतना बोझ पड़े कि मेरे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचे।'' इस कथन से, लगता है, जैसे उन्हें अपने जीवन के अन्त का पूर्वाभास मिल गया भीं। 22 मई तिलक के राजनीतिक जीवन में उल्लास का दिन था, जब पूना में उन्हें 3,25,000 रुपयों की एक थैली भेंट की गई, ताकि वह चिरौल के मुकदमे के खर्च को अदा कर सकें। उस दिन जब इस प्यार-भरे सद्भाव प्रदर्शन के लिए वह जनता का धन्यवाद करने के लिए मंच पर खड़े हुए, तब वह बहुत ही भावुक हो उठे। इतना भावुक वह अपने राजनीतिक जीवन में पहले कभी नहीं हुए थे। भरे हुए गले से रुंधी हुई आवाज में उन्होंने कहा-''अपनी असीम उदारता का प्रदर्शन करके आप लोगों ने तो मुझे वास्तव में खरीद लिया है-मेरे शरीर को भी और आत्मा को भी। बात साफ है। आप लोग चाहते हैं कि मैं आप लोगों के लिए पहले जैसा ही काम करता रहूं और अब मेरे लिए आपकी यह बात मानने के अलावा और कोई चारा नहीं रहा।''

यद्यपि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने असहयोग कार्यक्रम के प्रस्ताव को विचारार्थ कलकत्ते के अपने विशेष अधिवेशन को सुपुर्द कर दिया था, फिर भी गांधी जी तब तक के लिए न रुके और उसको कार्यान्वित करने में जुट गए। 'यंग इंडिया' में उन्होंने कई लेख लिखकर प्रेम और कष्ट-सहन के अपने सिद्धान्तों का प्रचार किया, जिससे देश में काफी उत्साह पैदा हुआ। टर्की के खलीफा के प्रति अंग्रेजों की दुर्नीति से मुसलमान खास तौर से बड़े नाराज थे। अतः 28 जुलाई को गांधी जी ने घोषणा कर दी कि 1 अगस्त से असहयोग का कार्यक्रम चालू किया जाएगा।

इस असहयोग आन्दोलन के प्रति तिलक क्या रुख लेते, यह तो सिर्फ अनुमान की ही चीज है, क्योंकि एक ओर जहां उन्होंने गांधी जी को यह आश्वासन दे रखा था कि ''अगर इस आन्दोलन में आप जनता को अपने साथ ले चल सकें, तो मैं आपका भरपूर समर्थन करूंगा यहीं पर दूसरी ओर कांग्रेस डेमोक्रेटिक पार्टी के घोषणापत्र में जनता से स्पष्टतः यह कहा गया था कि माण्टेग्यू रिफार्म्स ऐक्ट (सुधार अधिनियम) को, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, अमली जामा पहनाया जाए। यहां स्मरणीय है कि गांधी जी ने 1 अगस्त से असहयोग आन्दोलन आरम्भ करने का आह्वान तो कर दिया था, लेकिन उस पर कांग्रेस की स्वीकृति तब तक नहीं मिल सकी थी। इसलिए यह मानना अनुचित न होगा कि जब तक कलकत्ते के अपने विशेष अधिवेशन में कांग्रेस इस पर अपना निर्णय न दे देती, तब तक तिलक न तो गांधीजी के कार्यक्रम का समर्थन करते और न ही विरोध। गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में इस सम्बन्ध में जो अपना संयत विचार प्रकट किया है, उससे भी इस विचार की पुष्टि होती है।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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