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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

प्रस्तावना से

'दि आर्कटिक होम इन वेदाज'

''यह ग्रन्थ ओरियन या वेदों की पुरातनता के शोध-कार्य का परिणाम है।

''आर्य सभ्यता का आरम्भ प्राचीनतम वैदिक काल से भी कई हजार वर्ष पूर्व माना जाना चाहिए और जब हिमोत्तर काल (पोस्ट-ग्लैसिअल इपॉक) 8,000 ईसा पूर्व ठहराया जाता है, तब इसमें आश्चर्य नहीं कि आदिम आर्य-सभ्यता का काल 4,500 ईसा पूर्व से, जो कि प्राचीनतम वैदिक काल है, पहले का हो। वास्तव में इस ग्रन्थ में यही सिद्ध करने की चेष्टा की गई है। 'ऋग्वेद' में ऐसे अनेक परिच्छेद हैं, जिन्हें अब तक अत्यन्त कठिन और समझ के बाहर का समझा जाता रहा है, लेकिन हाल के वैज्ञानिक शोध को ध्यान में रखते हुए अगर उनकी व्याख्या की जाए, तो उससे वैदिक देवी-देवताओं में ध्रुवीय गुणों (पोलर ऐट्रिव्यूट्स) का समावेश मिलता है या प्राचीन ध्रुवीय पंचांग (कैलेंडर) का पता चलता है। अवेस्ता से हमें स्पष्ट रूप से इस बात का पता लग जाता है कि आर्यों का स्वर्ग उस क्षेत्र में अवस्थित था, जहां सूर्य वर्ष में केवल एक बार उगता था, लेकिन बर्फ और हिम के आक्रमण के कारण वह नष्ट हो गया, जिससे वहां की जलवायु नम्र हो गई और वहां से हटकर लोगों को दक्षिण की ओर आने पर मजबूर होना पड़ा। इन सुगम-सुबोध तथ्यों को जब हम हिम युग और हिमोत्तर युग के बारे में उपलब्ध तथ्यों के साथ रखते हैं, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे बिना नहीं रह पाते कि आदिम आर्य निवास उत्तर ध्रुवीय और अन्तर्हिम युगीन था।

''अनेक वैज्ञानिक पहले ही अपना यह विश्वास प्रकट कर चुके हैं कि मानव का आदि निवास स्थल उत्तर ध्रुवीय (आर्कटिक) क्षेत्र ही था। भाषा विज्ञान के आधार पर भी इस सिद्धान्त का परित्याग कर दिया गया है कि आर्यों का उदगम स्थल मध्य एशिया था। इस स्थान के बदले अब उत्तरी जर्मनी और स्कैंडेनेविया को ही उनका उद्गम स्थल माना जाता है। विशुद्ध पौराणिक आधार पर प्रोफेसर राइस का कहना है कि आर्यों का उद्गम स्थल ''उत्तर ध्रुवीय वृत के भीतर कोई स्थान'' रहा होगा। मैंने इससे केवल एक ही कदम आगे बढ़कर यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि जहां तक आदिम आर्य निवास स्थान सम्बन्धी सिद्धान्त का सम्बन्ध है, यह सिद्धान्त वैदिक और अवैस्तिक परम्पराओं से ही निकला है। और इसी से नहीं, बल्कि अवैस्तिक वर्णन से मिलते-जुलते हाल के भूगर्भीय अनुसन्धानों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि आर्यों के स्वर्ग के विनाश की बात सच है और यह स्वर्ग अन्तिम हिम युग के पूर्वकाल में मौजूद था।''


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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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