जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक बाल गंगाधर तिलकएन जी जोग
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आधुनिक भारत के निर्माता
अध्याय 6 राष्ट्रीय पर्व
'गणपति' और 'शिवाजी' उत्सव आज महाराष्ट्र के जीवन के अंग बन गए हैं। आज के युवकगण यह विश्वास नहीं कर पाते कि धार्मिक पर्वों की तरह मनाए जानेवाले ये उत्सव केवल 70 वर्ष पूर्व तिलक ने आरम्भ किए थे। गणेश भगवान की वार्षिक पूजा प्राचीन काल से ही चली आई है, किन्तु तिलक ने उसे एक सामाजिक रूप दिया। आज महाराष्ट्र में कोई अन्य पर्व इतनी धूमधाम से और इतने व्यापक रूप में नहीं मनाया जाता जितना कि गणपति पूजा। यह सच है कि धीरे-धीरे इस पर्व का सामाजिक और राजनैतिक रूप मनोरंजकता के आगे दबता जा रहा है, किन्तु आज भी यह महाराष्ट्र का सबसे प्रमुख त्यौहार है, जिस प्रकार बंगाल में दुर्गा पूजा या उत्तरी भारत में रामलीला।
गणेश विद्या के प्रतीक हैं और सारी कठिनाइयों को दूर करनेवाले हैं। हर शुभ अवसर पर उनकी पूजा की जाती है। तिलक को गणपति से अधिक जनप्रिय देवता नहीं मिल सकते थे। उनके उत्सव को वह सार्वजनिक रूप देना चाहते थे जिससे मुहर्रम का आकर्षण कम हो और हिन्दू लोग उसमें न शामिल हों। 1893 में इस उत्सव के प्रचलन का यह प्रधान लक्ष्य था। एक-दूसरे के त्योहारों में भाग लेना साम्प्रदायिक शान्ति बनाए रखने का अच्छा ढंग है, किन्तु हिन्दुओं और मुसलमानों में उस समय बहुत तनातनी थी। उनमें अनेक झगड़े हुए। इनमें सबसे गम्भीर दंगे अगस्त 1893 में बम्बई में हुए। गणपति उत्सव की योजना कुछ मुसलमानों के हिन्दू-विरोधी कार्यों तथा सरकार द्वारा उनके पक्षपात के विरोध में बनाई गई। इसने जनता को तुरन्त आकर्षित किया और सामाजिक एकता और राजनैतिक जाग्रति का एक महत्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।
गणपति पूजा की सुधारकों ने हंसी उड़ाई, क्योंकि उसकी विधि धार्मिक त्योहारों का अनुकरण थी। किन्तु यह अनवार्य था। तिलक ने इसके आलोचकों को उत्तर देते हुए लिखा :
''जो यह कहते हैं कि गणपति की झांकियां मुसलमानों के ताजियों की नकल हैं, उन्होंने आषाढ़ और कार्तिक की एकादशी की भजन-मण्डलियों को नहीं देखा है। लेजिम का खेल, नगाडों की गड़गड़ाहट और इसी प्रकार के अन्य कार्य प्रायः हर मेले में होते हैं। पिछले दो-तीन सौ वर्षों से बहुत-से हिन्दू मुहर्रम कें अवसर पर मुसलमान पीरों की मनोती मानते रहे हैं। कारण हम हर धर्म का मान करते हैं। लेकिन मुसलमान पुराने मेलजोल को छोड़कर, बदमाशों के बहकावे में आकर हिन्दू साधुओं को नियमित रूप से तंग करने लगे। इससे भेदभाव उत्पन्न होना अनिवार्य ही था।''
तिलक ने न केवल गणपति उत्सव की पूरी योजना बनाई, वरन् 'केसरी' के द्वारा और अपने भाषणों से सारे महाराष्ट्र में उसका प्रचार भी किया। प्राचीन यूनान देश के ओलम्पिक त्योहार और अन्य देशों के राष्ट्रीय पर्वों का उदाहरण देते हुए उन्होंने जोरदार शब्दों में जनता से अनुरोध किया कि वह गणपति उत्सव में पूरा सहयोग दे। यह उत्सव शुरू से ही बिना जात-पांत के भेदभाव के मनाया जाता था।
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- अध्याय 1. आमुख
- अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
- अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
- अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
- अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
- अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
- अध्याय 7. अकाल और प्लेग
- अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
- अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
- अध्याय 10. गतिशील नीति
- अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
- अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
- अध्याय 13. काले पानी की सजा
- अध्याय 14. माण्डले में
- अध्याय 15. एकता की खोज
- अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
- अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
- अध्याय 18. अन्तिम दिन
- अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
- अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
- परिशिष्ट