लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

आधुनिक भारत के निर्माता

अगले आठ महीनों में तिलक ने जो भाषण किए, उन सबका मूल स्वर यही था और इस सम्बन्ध में उन्होंने जनमत तैयार करने के हर अवसर का सदुपयोग किया। उन्होंने मजदूर दल (लेबर पार्टी) के नेताओं के साथ सम्बन्ध स्थापित किए और इस दल के मुखपत्र साप्ताहिक ''हैरल्ड'' को दैनिक बनाने के कोष में चन्दा भी दिया। उन्होंने रैम्जे मैक्डॉनल्ड, सिडनी वेब और जॉर्ज लैन्सबरी से बराबर निकट सम्पर्क बनाए रखा। लैन्सबरी उनकी 'स्फटिक-सी निर्मल-धवल सच्चाई-ईमानदारी से बहुत प्रभावित थे। यह कहना शायद अत्युक्ति न हो कि प्रथम महायुद्ध की समाप्ति पर तिलक ने ब्रिटिश मजदूर दल (लेबर पार्टी) के साथ जो निकट सम्पर्क स्थापित किया, उसका आगे चलकर इस दल की भारत-सम्बन्धी नीति पर बड़ा ही अनुकूल प्रभाव पड़ा।

तिलक ने दूसरा बड़ा काम जो हाथ में लिया, वह था 'ब्रिटिश ईडिया कमेटी' और 'इंडिया' पत्रिका का पुनर्गठन। 'इंडिया' इण्डियन नेशनल काग्रेस का मुखपत्र समझा जाता था, परन्तु वह अपने स्वतन्त्र विचार व्यक्त किया करता था, जो कभी-कभी कांग्रेस के विचारों के विपरीत होते थे। यह कार्य निहित स्वार्थ के लोगों के कड़े विरोध के बावजूद सम्पन्न हुआ। स्मरणीय है कि नरसिंह चिन्ता स्तम्भ के लिए वह समाचार समीक्षा भेजा करते थे। उन्होंने तिलक के लन्दन प्रवास का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है-

''यहां उनका प्रवास कई दृष्टियों से अपूर्व रहा। यद्यपि वह यहां 13 महीने रहे, किन्तु वह कभी भी किसी ऐसी चित्रशाला, चिड़ियाघर या अन्य प्रसिद्ध भवन या स्मारक को देखने नहीं गए, जिन पर लन्दन-वासियों को गर्व है। वह केवल ब्रिटिश म्यूजियम, इडिया ऑफिस लायब्रेरी और हाउस ऑफ कामन्स देखने गए थे। सचमुच ही वह एक असाधारण यात्री थे, क्योंकि उन्होंने पर्यटक की दृष्टि से लन्दन को देखा ही नहीं।''

लन्दन के जीवन में खप जाने की उनकी क्षमता के विषय में लोगों को आशंकाएं थीं, किन्तु सब कुछ देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उन्होंने इसे बड़ी खूबी से निभाया। प्रथम 10 महीनों तक वह लन्दन में 10 हौले प्लेस, मैडा वेल में रहे और बाद में 60, टैलबॉट रोड, पैडिंगटन में। यह मकान एक भारतीय का था, जिसने उनको रहने के लिए दे दिया था। इस भवन को अब तिलक स्मारक के रूप में परिणत कर दिया गया है, जो अब भारतीय विद्यार्थियों के सभा कक्ष और छात्रावास के रूप में मौजूद है। लंदन में वेशभूषा में परिवर्तन करने के अलावा उनके रहन-सहन और दिनचर्या में कोई अन्तर नहीं पड़ा। दिन के भोजन के बाद वह निश्चित कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए घर से निकल पड़ते और 5 बजे शाम तक लोगों से भेंट करने के लिए फिर घर लौट आते थे। रात में वह जल्दी सो जाते थे। अपनी आयु और स्वास्थ्य के कारण लन्दन के भारी भीड़-भाड़ से निपटना उनके लिए हर रोज की कठिन समस्या थी, फिर भी वह कभी भी किसी नियत कार्य में देर से न पहुंचे। 13 महीनों का उनका लन्दन प्रवास तरह-तरह के कार्यों से पूर्ण रहा। काफी लोगों के सम्पर्क में आने से उन्हें ब्रिटेन के राजनैतिक जीवन को समझने में सहायता मिली और उनका अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण भी व्यापक हो गया।

लन्दन में उनके जिम्मे एक महत्वपूर्ण काम था भारतीय होम रूल लीग के प्रतिनिधि रूप में पार्लमैण्टरी ज्वायण्ट सेलेक्ट कमिटी (संसदीय संयुक्त प्रवर समिति) के सम्मुख, जो 'गवर्नमेण्ट आफ इंडिया बिल' (भारत सरकार विधेयक) पर विचार करने के लिए नियुक्त की गईं थी, उपस्थित होना। कांग्रेस ने भी उन्हें पेरिस में हो रहे शान्ति-सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व करने का भार सौंपा था, किन्तु उनको फ्रांस जाने के लिए पासपोर्ट (पारपत्र) नहीं दिया गया। इस पर उन्होंने शान्ति सम्मेलन के अध्यक्ष के पास यह स्मरण-पत्र भेजकर ही सन्तोष किया-

''पहली बात कि भारत को राष्ट्रसंघ (लीग ऑफ नेशन्स) में प्रतिनिधित्व का वही अधिकार मिलना चाहिए, जो ब्रिटिश साम्राज्य के स्वशासित उपनिवेशों को प्राप्त है और दूसरी, इस बात की घोषणा की जानी चाहिए कि भारतीय स्वशासन के योग्य हैं और एक प्रगतिशील देश होने के नाते उन्हें आत्मनिर्णय का पूरा अधिकार है और इस सिद्धान्त के फलस्वरूप उन्हें यह भी हक है कि लोकतंत्र के आधार पर वे अपनी सरकार का रूप स्वयं निश्चित करें और अपने देश की दशा के अनुसार ही उसकी उन्नति का मार्ग निर्धारित करे।''

इतने कार्यों को एक साथ करने के कारण उनका लन्दन प्रवास जोसेफ़ बैप्टिस्टा के शब्दों में एक ''पागल की दौड़'' के समान था। जहाज से 6 नवम्बर, 1919 को घर के लिए रवाना होने पर उन्हें खुशी अवश्य हुई होगी, हालांकि उनके दिल में यह भी विचार जरूर आया होगा कि वह एक बार फिर ब्रिटेन आएंगे, जहां के सागर तट उनका पुनः स्वागत करेंगे।


...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

लोगों की राय

No reviews for this book