कविता संग्रह >> रूही रूहीडॉ. संंजीव कुमार
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कविता संग्रह
आमुख
तरुणाई के अहसास निराले होते हैं। प्रेम के वह आवेग, आकार्षण पर्व भावनाउला काल में कभी कभी ताजगी का अहसास कराती हैं और कभी-कभी टनकपुनरावलोकन से होठों पर मुस्कान तैर जाती है। तरुणाई के दिनों में कविता के साथ-साथ गाजला और नाया की रूमानियत का शौक तो रहता ही है। कुछ आत्मानुभूत एवं कुछ लोगों के बाहरसा की निरखते तरुणाई के दिनों में कुछ ऐसी ही रूमानी रचनायें लिख गाई थी।
'रूही' तरुणाई के काल की रूमानी रचनाओं का संकलन है, जो लगभग 1975 से 1995 के आसपास लिखी गई थीं। साफगोर्ड के साथ उनका संकलन करके पाठकों एवं काव्य-मनीषियों को प्रस्तुत करने का प्रयास रूही में किया गया है। मही' की रचनाओं पर काव्य मनीषियों के विचारों एवं सुझावों का मुझे इन्तजार रहेगा।
- डॉ. संजीव कुमार
दिसम्बर, 2015
सैन एंटोनिओ, यू.एस.ए.
drsanjeevk@rediffmail.com
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- कविता क्रम