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उपन्यास >> उमादे

उमादे

डॉ. फतेह सिंह भाटी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16230
आईएसबीएन :9789390659845

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हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं जहाँ स्त्री और पुरुष एक दूसरे के बिना अपने एकाकी जीवन को पूर्ण बताने का प्रयास कर रहे हैं, परन्तु सच तो यह है कि वे कितना ही हँसें, मुस्कुराएँ, प्रकट तौर पर ख़ुश दिखने की कोशिश करें पर भीतर ही भीतर एक सूनापन, एक दाह, एक अतृप्ति का भाव सालता ही रहेगा। वे मिलकर ही पूर्ण हो सकते हैं। वह भी दो तन एक मन होने पर।

लोक, उनकी परम्पराएँ, उनका व्यवहार, उनका आचार-विचार, सब कुछ समय के साथ बदल जाता है परन्तु सदियों से न तो मानव मन बदला, न ही उसकी पीड़ा, उसका सन्ताप। मैंने सोलहवीं सदी की इस कथा के माध्यम से उसी पूर्णता के अभाव में अनेक स्त्री शरीरों और राज्य की सम्पन्नता को भोगते हुए भी अतृप्त रह जाने के भाव को उकेरने का प्रयास किया है।

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