आचार्य श्रीराम शर्मा >> महाकाल का सन्देश महाकाल का सन्देशश्रीराम शर्मा आचार्य
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Mahakal Ka Sandesh - Jagrut Atmaon Ke Naam - a Hindi Book by Sriram Sharma Acharya
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हम कोई ऐसा काम न करें, जिसमें अपनी अंतरात्मा ही अपने को धिक्कारे। इस तथ्यका निरन्तर ध्यान बनाये रखा जाए। अपनी क्षुद्रताएँ और दुष्टताएँ दूसरों से छिपाकर रखी जा सकती है, दूसरों को झुठलाया
और भरमाया जा सकता है, पर अपने आपसे तो कुछ छिपाया नहीं जा सकता। दूसरे तोकिसी भय या प्रलोभन से अपने दोषों को सहन कर सकते हैं, पर आत्मा तो वैसा क्यों करेगा? आत्म-धिक्कार, आत्म
प्रताड़ना, आत्म-असंतोष, आत्म-विद्रोह मानवी चेतना को मिलने वाला सबसे बड़ा दण्ड है।
(यु०नि०यो०दर्शन स्वरूप-१.२२)
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आत्मा की पुकार अनसुनी करके यदि हम लोभ, मोह के पुराने ढर्रे पर चलते रहे, तोआत्मधिक्कार की इतनी विकट मार पड़ेगी कि झंझट से बच निकलने और लोभ, मोह को न छोड़ने की चतुरता बहुत महँगी पड़ेगी। अंतर्द्वन्द्व उन्हें किसी काम कान छोड़ेगा। मौज-मजा का आनंद आत्म-प्रताड़ना न उठाने देगी और साहस की कमी से ईश्वरीय निर्देश पालन करते हुए जीवन को धन्य बनाने का अवसर भी हाथ सेनिकल जाएगा। हमको इस दुहरी दुर्गति से बचना चाहिए। सही को अपनाने और गलत को छोड़ देने का साहस ही युग निर्माण परिवार के परिजनों की वह पूँजी है,जिसके आधार पर वे युग संधि की वेला में ईश्वर प्रदत्त उत्तरदायित्व का सही रीति से निर्वाह कर सकेंगे।
(यु०नि०यो० का दर्शन स्वरूप-१.२६)
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इतिहास साक्षी है कि बिना लड़े भगवान् कृष्ण ने अर्जुन का सारथी मात्र बनकरपाण्डवों को जिता दिया और दुर्योधन शक्तिशाली सेना प्राप्त करके भी हारा। दुर्योधन ने भूल की जो स्वयं भगवान् के समक्ष सेना को ही महत्त्वपूर्णसमझा, किन्तु आज भी हम सब दुर्योधन बने हुए हैं और निरन्तर यही भूल करते जा रहे हैं। संसारी शक्तियों, भौतिक सम्पदाओं के बल पर ही जीवन संग्राममें विजय चाहते हैं, ईश्वर की उपेक्षा करके। हम भी तो भगवान् और उनकी भौतिकस्थूल शक्ति दोनों में से दुर्योधन की तरह स्वयं ईश्वर की उपेक्षा कररहे हैं और जीवन में संसारी शक्तियों को प्रधानता दे रहे हैं, किन्तु इससे तो कौरवों की तरह असफलता ही मिलेगी।
(वाङ्मय-८, पृ० १.६२)
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