आचार्य श्रीराम शर्मा >> उत्तिष्ठत जाग्रत उत्तिष्ठत जाग्रतश्रीराम शर्मा आचार्य
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मनुष्य अनन्त-अद्भुत विभूतियों का स्वामी है। इसके बावजूद उसके जीवन में पतन-पराभव-दुर्गति का प्रभाव क्यों दिखाई देता है?
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नित्य हँसमुख रहो। मुख को मलीन कभी मत करो। यह निश्चय कर लो कि चिन्ता नेतुम्हारे लिए जगत् में जन्म ही नहीं लिया। इस आनंद के स्रोत जीवन में सिवा हँसने के चिन्ता के लिए स्थान ही कहाँ है?
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यदि गिर पड़ो, तो हताश मत होओ। गिरना बुरा नहीं है; क्योंकि गिरकर भी उठा जासकता है। जो चढ़ता है, वही गिरता भी है। घबराओ मत। चलो, गिरो, उठो-फिर आगे बढ़ो।
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सुन्दर वही है, जिसका हृदय सुन्दर है। जो आकृति से बहुत सुन्दर है, जिसके शरीर कारंग और चेहरे की बनावट बहुत आकर्षक है; परन्तु जिसके हृदय में दुर्गुण और दोष भरे हैं, वह मनुष्य वास्तव में गंदा और कुरूप है।
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इस बात की परवाह मत करो कि लोग तुम्हें क्या कहते हैं? लोग तो अपने-अपने मनकी कहेंगे। वे राग-द्वेष का जैसा चश्मा चढ़ाये होंगे, वैसा ही कहेंगे। उनकी प्रशंसा में फूलो मत और उनकी निन्दा से घबराकर लक्ष्य से मत हेटो।
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चार बातें नहीं भूलनी चाहिए-
१- बड़ों का आदर करना,
२- छोटों को सलाह देना,
३- बुद्धिमानों से सलाह लेना और
४- मूर्खा से न उलझना।
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जब तक तुम स्वयं अपने उद्धार के लिए कमर कसकर खड़े नहीं होते, तब तक करोड़ोंईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम मिलकर भी तुम्हारी रत्ती भर भी सहायता नहीं कर सकते। इसलिए दूसरों की तरफ मत ताको, अपनी सहायता आप करो।
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अपने से अधिक सुखी मनुष्यों को देखकर मन में ईष्र्या उत्पन्न मत करो, वरन् अपनेसे गिरी हुई दशा के कुछ उदाहरणों को सामने रखकर उनकी और अपनी दशा की तुलना करो, तब तुम्हें प्रसन्नता होगी कि ईश्वर ने तुम्हें उनकी अपेक्षा कितनीसुविधाएँ दे रखी हैं।
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कर्तव्यपालन करते हुए मौत मिलना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सफलता और सार्थकता मानी गई है।
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यह जीवन संग्राम है। इसमें जो युद्ध की सी तत्परता व्यक्त नहीं करता, वह हारजाता है; पर जो प्रयत्न और पुरुषार्थ का गाण्डीव उठाकर रणोद्यत हो जाता है, वही अंत में विजय पाता है।
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जिसे नैतिकता के प्रति आस्था तो हो, पर उसके लिए लड़ पड़ने की हिम्मत न हो, वहभले ही कई डिग्रियाँ ले चुका हो, सुशिक्षित नहीं कहा जा सकता।
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