संकलन >> गिरिजा कुमार माथुर रचना-संचयन गिरिजा कुमार माथुर रचना-संचयनपवन माथुर
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यह प्रगतिशील और प्रयोगधर्मी कविता के प्रवर्तकों में से एक गिरिजा कुमार माथुर की चयनित रचनाओं की पुस्तक है। गिरिजा कुमार माथुर का जन्म अशोक नगर, ज़िला गुना, म.प्र. में 22 अगस्त 1919 को हुआ। तेरह वर्ष की आयु में वे अध्ययन के लिए झाँसी चले गए और उसी दौरान उनका कविता और साहित्य से बाक़ायदा परिचय हुआ। सन् 1936 में उनकी पहली कविता ‘मैं निज सोने के पर पसार’ कर्मवीर में प्रकाशित हुई और 1941 में पहला काव्य-संग्रह मंजीर आया, जिसकी भूमिका सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने लिखी थी। काव्य रचना का यह सिलसिला तार सप्तक, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिला पंख चमकीले, जो बँध नहीं सका, भीतरी नदी की यात्रा, साक्षी रहे वर्तमान, कल्पांतर, मैं वक़्त के हूँ सामने और पृथ्वी कल्प जैसी कविता पुस्तकों में जारी रहा। मूल गीत से भी अधिक प्रसिद्ध उनका भावांतर गीत ‘हम होंगे कामयाब’ आज देशव्यापी समूह गान बन चुका है।
गिरिजा कुमार माथुर कवि ही नहीं हैं, उन्होंने आलोचना, सैद्धांतिकी, रेडियो नाटक, संस्मरण जैसी विधाओं में भी अपने सृजन और चिंतन से परिचय कराया है। उनकी काव्य-रचनाएँ पूर्ववर्ती काव्यधाराओं से ऐसा प्रयाण-बिंदु प्रस्तुत करती हैं जिसे हम अपने वक़्त से रू-ब-रू होना कह सकते हैं। गिरिजा कुमार माथुर ने काव्य-संवेदना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अद्भुत संयोजन किया है। वस्तुतः उन्होंने हिंदी कविता में नवीन शैली-शिल्प, बिंब और रूप-विधान का अमूल्य योगदान दिया है। शब्द की सांकेतिक अर्थ-ध्वनियाँ, अनुगूजें, शब्दों को बरतने का गहन काव्य-विवेक, आसपास की दुनिया को समेटती अंतरंगता की कूची, काल-प्रतीतियों के अद्भुत रूपाकार और जीवन से संपृक्ति के आलोक में डूबा काव्य-वैविध्य एक प्रकार से नए सौंदर्यशास्त्र की सृष्टि है।
ऐसे महत्त्वपूर्ण कवि की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर उनकी कविताओं, महत्त्वपूर्ण सैद्धांतिकी के आलेख, आलोचना-दृष्टि और संस्मरण का यह रचना-संचयन गिरिजा कुमार माथुर की स्मृति ताज़ा तो करेगा ही, उनकी रचनाओं और विचारों पर नए सिरे से विमर्श की भूमिका भी प्रस्तुत करेगा।
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