उपन्यास >> खोए हुए अर्थ खोए हुए अर्थनिरंजन तसनीमकीर्ति केसर
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खोए हुए अर्थ : आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया यह उपन्यास नवंबर 1984 के और उसके बाद के पंजाब की तस्वीर प्रस्तुत करता है। पाँच दिनों की कहानी में सिमटा यह उपन्यास सितंबर 1985 तक की दास्तान बयान करता है, परंतु इसकी रचना करने में उपन्यासकार की 1992 तक की अनुभूति भी शामिल है। पंजाब द्वारा पिछले दो दशकों से भोगे जा रहे इस संताप की कड़ी कहीं-न-कहीं 1947 से भी जुड़ती है। अतः चेतन या अवचेतन रूप में यह उपन्यास एक तरफ़ तो नवंबर 1984 के दंगों को 1947 की पृष्ठभूमि में पेश करता है, दूसरी तरफ़ स्वाभिमानी पंजाबियों के जीवन के खोए हुए अर्थों को भी ढूँढने का प्रयास करता है।
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