लोगों की राय

उपन्यास >> अब न बसौं इह गाँव

अब न बसौं इह गाँव

कर्त्तार सिंह दुग्गल

प्रकाशक : साहित्य एकेडमी प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :420
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16362
आईएसबीएन :9788126001231

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

यह उपन्यास इंसानी रिश्तों की कहानी है, ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं। दुग्गल जी ने यथार्थ के घटनाक्रम को आधार बनाते हुए भी उस विकराल समय का इतिहास नहीं लिखा है। इसमें इंसान नहीं मरते, कदरें भी मरती हैं; देश का बँटवारा ही नहीं होता सांझी संस्कृति भी कट-कट जाती है और हम जो दर्दनाक चीख़ बार-बार सुनते हैं, वह किसी दम तोड़ते, निर्दोष, जख्मी इंसान- हिंदू, मुसलमान या सिक्‍ख की ही न होकर घायल इंसानियत की चीख़ होती है।

उपन्यास के पहले पन्ने से ही लेखक पाठक को ऐसे माहौल में ले जाता है जहाँ गिने-चुने किरदार नहीं हैं, कोई नायक-नायिका नहीं है। यह सारी कौम की कहानी है, इसीलिए एक-एक पैरा में लेखक दसियों नाम गिना जाता है, दसियों घटनाओं की चर्चा कर जाता है। एक छोटा क़स्बा सारे देश का बल्कि कौमों की जिंदगी का एक सजीव धड़कनों भरा प्रतीक बनकर उभरता है। पढ़ते हुए लगता है कि लेखक ने बड़ी बेचैनी में यह कहानी कही है। एक किरदार की चर्चा एक वाक्य में करते हैं तो झट से कोई दूसरी उससे जुड़ी घटना आँखों के सामने घूम जाती है, और पहलू-दर-पहलू कहानी उजागर होती चली जाती है।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book