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बारोमास
बारोमास
प्रकाशक :
साहित्य एकेडमी |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 16396
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आईएसबीएन :9788126040049 |
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5 पाठक हैं
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"बारोमासा : किसानों के संघर्ष और अस्तित्व के दर्द की मार्मिक गाथा।"
भारतीय कृषि अर्थव्यस्था की रीढ़ हमारे किसान इन दिनों मुश्किल में हैं। खुली व्यापार नीति तथा वैश्वीकरण की असामान्य लहरों ने उन्हें बुरी तरह झकझोरकर रख दिया है। उनकी बढ़ती आत्महत्याओं से सारा देश हिल गया है। एकबारगी ऐसा लग रहा है मानो उनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है । वे अलग-थलग से हो गए हैं।
बारोमरास उपन्यास में किसानों की इन सभी समस्याओं पर व्यापक दृष्टि डाली गई है। बारह महीनों में लिपटी उनकी वेदना की हुंकार आप इसमें महसूस कर सकते हैं। यह उपन्यास महाराष्ट्र के किसान सुभानराव के परिवार के इर्द-गिर्द बुना गया है। इसमें सुभानराव की पत्नी शेवंतामाई, एक बेटी-दामाद और दो बेटों के सहारे किसानों के वर्तमान हालात का मार्मिक चित्रण हुआ है। दोनों पढ़े-लिखे बेटों (एकनाथ और मधु) को रिश्वत के अभाव में नौकरी नहीं मिलती। एकनाथ की पढ़ी-लिखी पत्नी अलका उसके नौकरी न मिलने और घर में कलह के चलते घर छोड़कर चली जाती है। छोटा बेटा मधु लड़-झगड़कर जमीन का एक हिस्सा बेचकर एक लाख रिश्वत देता भी है तो दलाल उसे लेकर लापता हो जाता है। कर्ज के चलते दामाद की आत्महत्या से आहत सुभानराव यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाते और एल्ड्रीन पीकर आत्महत्या की कोशिश करते हैं। लेकिन किसी तरह उन्हें बचा लिया जाता है। उपन्यास के अंत में उनका ‘ग़ायब’ होना प्रतीकात्मक रूप से किसानों का मुख्यधारा से ‘गायब’ होने का बड़ा दुखद परिदृश्य प्रस्तुत करता है। साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत इस मराठी उपन्यास पर हिंदी में एक फिल्म का निर्माण भी हुआ है।
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