उपन्यास >> अग्निसाक्षी अग्निसाक्षीललितांबिका अंतर्जनम्सुधांशु चतुर्वेदी
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अग्निसाक्षी ललितांबिका अंतर्जनम् का विशिष्ट उपन्यास है। इस कृति को वर्ष 1977 में मलयामम् भाषा में लिखित सर्वोत्तम कृति के रूप में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मलयालम् साहित्य में अपनी प्रौढ़ विषयवस्तु और निरंतर छीजते जा रहे सामाजिक मूल्यों, आदर्शों तथा परंपराओं को नारी-स्वातंत्र्य से जोड़ने के नाते यह कृति मलयाली पाठकों के बीच बहुत समादृत हुई है। अपने कलेवर में सीमित होने के बावजूद इस उपन्यास की कथा-नायिका उन परंपरागत प्रश्नों से टकराती है जो किसी भी संवेदनशील नारी के मन में उठ सकते हैं और उसे उद्बुद्ध या प्रेरित करते रहते हैं। प्रस्तुत उपन्यास की कहानी के मूल में नंबूतिरि (उच्च ब्राह्मण) परिवार की युवा बहू तेरिकुट्टी के अंतर्मन में सुलगती आग उसे सामाजिक रूढ़ियों और जकड़बंदियों से मुक्त होने की प्रेरणा देती है। इस आग में तपकर ही उसका व्यक्तित्व निरंतर निखरता चला जाता है और कई तरह के सामाजिक, पारिवारिक संकटों एवं दुविधाओं को पाकर वह अपने गंतव्य को प्राप्त कर लेती है।
अग्निसाक्षी समाज में नारी की रचनात्मक भूमिका को एक नई पृष्ठभूमि प्रदान करनेवाला सशक्त उपन्यास है, जिसमें स्वाभाविक रूप से कथानायिका के व्यक्तित्व के विकास को उकेरा गया है।
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