उपन्यास >> पतझड़ पतझड़नील पद्मनाभनएच बालसुब्रह्मण्यम
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पतझड़ साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत तमिल उपन्यास इलै उदिर कालम् का हिंदी अनुवाद है। इस उपन्यास में वृद्धजनों की विकट जीवन-स्थितियों, शारीरिक व मानसिक समस्याओं, दुखों के साथ-साथ उनके आचारों, विचारों और व्यवहारों के सघन विवरण मौजूद हैं। भारत में संयुक्त परिवारों के टूटने से वृद्धजनों की सुरक्षा को गहरी क्षति पहुँची है। शहरी समाज में वयस्क बेटों और बहुओं का नौकरी-पेशा होना बूढ़े-बूढ़ियों को अपने घर में भी अकेला बना रहा है। उनकी सेवा-सुश्रूषा की कौन कहे, उनसे ठीक से भर मुँह बोलने-बतियाने वाला भी कोई नहीं बचता।
बन रंहे नए परिवारों में इतना अधिक तनावपूर्ण वातावरण होता है कि ये वृद्ध नागरिक अवसादपूर्ण जीवन जीने को अभिशप्त हैं। अब नगरों में वृद्धाअरम पनप रहे हैं। संतानें अपने माँ-बाप को इन्हीं के हवाले करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं और ख़ुद देश-विदेश के दूर-दराज़ के नगरों-महानगरों में बेहतर आजीविका की लालसा में पड़ी रहती हैं उन्हें अपने मॉँ-बाप के दाह-संस्कार में भी शामिल होने की फ़ुर्सत नहीं मिलती। यह उपन्यास इन सारी स्थितियों-परिस्थितियों को इनकी संपूर्ण जटिलता में प्रस्तुत करता है।
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