कविता संग्रह >> गुजराती दलित कविता गुजराती दलित कवितामालिनी गौतम
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"दलित कविता : समाज के दर्पण में सच्चाई और सौंदर्य की खोज"
समकालीन गुजराती कविता में दलित कविताओं ने अपना उल्लेखनीय स्थान बना लिया है। गुजराती दलित कविता में यदि सब कुछ उत्कृष्ट व कलात्मक न रचा जा रहा हो तो भी, उसे मूल्यांकन के दायरे से बाहर किस तरह छोड़ा जा सकता है। लेकिन दलित कविता सिर्फ़ दलित समस्याओं एवं अपने व्यक्तिगत गुस्से और आक्रोश को व्यक्त करने का, या अपशब्दों को बोलने का साधन तो नहीं ही हो सकती। क्या कविता के माध्यम से व्यक्त की जाने वाली दलित समस्याएँ, व्यष्टि से समष्टि की यात्रा तय करती हैं ? पाठक की संवेदना को झकझोर कर, उसके मन में प्रवेश करके, वहाँ घर कर बैठी परंपराओं, रिवाज़ों और भ्रामक रूढ़ियों पर सचोट प्रहार करती हैं ? उन्हें तोड़ने में सक्षम होती हैं ? क्या ये कविताएँ अपने समय से संवाद करते हुए, अपनी समस्याओं को कलात्मक तरीके से प्रस्तुत करने के साथ साथ, उनके निराकरण के लिए भी, कोई दिशा निर्देश देती हैं ? क्या ये कविताएँ सामाजिक ताने-बाने को तोड़ते हुए, एक नए समाज के निर्माण की दिशा में संवेदना उत्पन्न करने के अपने लक्ष्य को सिद्ध कर पाती हैं ? क्या ये कविताएँ अर्थ और सौंदर्य के स्तर पर दलित साहित्य में कुछ नया प्रदान करती हैं ? प्रस्तुत कविता संकलन में इन सब प्रश्नों के जवाब मिलते हैं।
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